अखुरठा संकष्टी चतुर्थी 2024: बाधाओं को दूर करें और समृद्धि लाएं

हर महीने कृष्ण पक्ष चतुर्थी पर भक्त भगवान गणेश का उपवास रखते हैं। संकष्टी या संकट हारा चतुर्थी व्रत के नाम से पहचाने जाने वाला ये व्रत, भगवान गणेश के उपासकों के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। प्रत्येक संकष्टी व्रत का अपना नाम होता है, और जो मार्गशीर्ष के महीने में होता है, उसे अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। जीवन में समृद्धि और धन- वैभव पाने के लिए भी लोग ये व्रत करते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्टों का निवारण होता है, और शांति प्राप्त होती है।    

इस दिन दुर्गा पीठ और भगवान गणेश के अखुरथ महा गणपति अवतार की पूजा की जाती है आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण तथ्य और व्रत कथा। 

2024 में कब है अखुरथ संकष्टी चतुर्थी?

EventMuhurat
अखुरथ संकष्टी चतुर्थीबुधवार, 18 दिसंबर 2024
संकष्टी के दिन चन्द्रोदय09:07 अपराह्न
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ18 दिसंबर 2024 को सुबह 10:06 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त10:02 AM on Dec 19, 2024

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

गणेश चतुर्थी की बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं, आइए जानते हैं कुछ प्रचलित कथाएं।

पहली कथा 

इस संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी किंवदंतियों में से एक के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती ने चौसर खेलने का फैसला किया। चूंकि खेल की निगरानी करने वाला कोई नहीं था, इसलिए भगवान शिव ने अपनी शक्तियों के साथ एक छोटा बालक उत्पन्न किया और उसे निरीक्षक के रूप में काम करने के लिए कहा। वह बालक मान गया और शिव- पार्वती खेल खेलने लगे। देवी पार्वती ने लगातार तीन बार खेल जीता, लेकिन बालक ने भगवान शिव को हर बार विजेता घोषित किया। लड़के के पक्षपात से क्रोधित होकर, माता पार्वती ने उसे श्राप दिया और कहा कि वह दलदल में रहेगा। श्राप मिलने के तुरंत बाद, बालक ने उनसे दया की याचना की और साथ ही क्षमा मांगते हुए कहा कि उसने अज्ञानता में ऐसा किया।

इसके बाद, बालक की क्षमा याचना से माता पार्वती का हृदय बदल गया और उन्होंने उस छोटे बालक को नाग कन्याओं के आने की प्रतीक्षा करने और संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत के बारे में बताया। माता ने उस बालक को श्राप से छुटकारा पाने के लिए 21 दिनों तक व्रत रखने के लिए कहा। माता पार्वती के कहे अनुसार, उस छोटे से बालक ने व्रत का पालन किया और भगवान गणेश को प्रसन्न करने में सफल रहा और उसे श्राप से मुक्ति मिली।

दूसरी कथा :

एक बार की बात है, भगवान विष्णु का विवाह लक्ष्‍मी जी के साथ तय हो गया था। विवाह की तैयारी हो रही थी। सभी देवताओं को निमंत्रणपत्र भेजे गए, लेकिन भूल के कारण गणेशजी को निमंत्रण पत्र नहीं भेजा गया। भगवान विष्णु की बारात निकालने का समय आ चुका था। सभी देवी-देवता विवाह समारोह में आ चुके थे। तब सबको विचार आया कि गणेश जी कहीं भी उपस्थित नहीं हैं। सभी आपस में चर्चा करने लगे कि गणेशजी को न्योता नहीं भेज गया है या गणेशजी खुद ही नहीं आए हैं? इस बात पर सभी आश्चर्यचकित थे। सबने मिलकर विचार किया कि इस बारें में विष्णु भगवान से ही पूछ लिया जाए। 

पूछे जाने पर विष्णु भगवान ने उत्तर दिया कि उन्होंने गणेशजी के पिता महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेश अपने पिता के साथ चाहें तो आ सकते हैं, उन्हें अलग से न्योता देने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही उनको सवा मन चावल, सवा मन मूंग, सवा मन लड्डू और सवा मन घी का भोजन चाहिए होता है। तो अगर गणेश नहीं आना चाहते तो भी कोई बात नहीं। उन्हें दूसरे के घर जाकर इतना भोजन नहीं करना चाहिए।  

इन बातों के बीच किसी ने चुहल की- यदि गणेश जी आएं तो उनको द्वारपाल बना कर बैठा देंगे ताकि वो घर का ख्याल रख सकें। वे अगर चूहे पर बैठकर चलेंगे तो बारात से पीछे ही रह जाएंगे। यह सुझाव सभी को पसंद आ गया, साथ ही विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।

इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचे। सभी ने उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने के लिए बैठा दिया। बारात के चलने के बाद नारदजी की नजर गणेशजी पर पड़ी जो द्वार पर ही बैठे हुए थे। नारदजी ने गणेश जी के पास जाकर उनसे रुकने का कारण पूछा। गणेश जी ने उत्तर दिया कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने उन्हें अपनी मूषक सेना को आगे भेजने की सलाह दी। जो आगे जाकर रास्ता खोद देगी, जिससे बारात और सभी लोग धरती में धंस जाएंगे, तब सभी को गणेश जी को सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।

गणेशजी ने अपनी मूषक सेना को तुरंत ही आगे भेज दिया और उस सेना ने जमीन खोद डाली। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में फंस गए। लाख प्रयत्नों के बाद भी पहिए नहीं निकले। सभी ने अलग-अलग उपाय किए, परंतु पहिए नहीं निकाल पाए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें। तब तो नारदजी ने सबसे  कहा कि आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। जब आप लोग उन्हें मनाकर लाएंगे तभी सभी कार्य सही होंगे है और यह संकट टल जाएगा। 

भगवान शिव ने तुरंत ही अपने दूत नंदी को गणेशजी को साथ लेकर आने को भेजा। गणेशजी का मानपूर्वक पूजन किया गया, तब कहीं रथ के पहिए बाहर निकले। रथ के पहिए निकल तो गए, लेकिन वे काफी टूट-फूट गए थे, तो उन्हें कौन सही करेगा। पास के खेत में एक खाती काम कर रहा था, जिसे बुलाया गया। खाती अपना काम शुरू करने से पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ का जाप कर गणेशजी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को दुरुस्त कर दिया। फिर खाती ने कहा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी की आराधना नहीं की होगी और न ही उन्हें याद किया होगा इसीलिए तो आपके ऊपर यह संकट आया। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी हर काम के पहले गणेशजी की पूजा करते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवता हैं, तो आप सभी गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान गणेशजी की जय-जयकार करते हुए आगे बढ़ें, इससे आपके सभी काम बन जाएंगे और संकट दूर हो जाएंगे। और भगवान गणेश के जय-जयकार के साथ बारात वहां से चल दी। विष्णु भगवान और लक्ष्मी जी का विवाह संपन्न हुआ और सभी सकुशल घर लौट आएं।

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी की पूजा कैसे करें ?

  • अखुरथ संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह शुद्ध पानी से नहा कर साफ कपड़े पहनें। 
  • भगवान गणेश की उपासना मंत्रों और जाप के साथ करें। 
  • संध्याकाल में भगवान गणेश की पूजा करें और उसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा संपन्न करें। 
  • पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान गणपती का शुद्ध जल से अभिषेक करें। 
  • इसके बाद भगवान को पुष्प अर्पित करें। 
  • इसके अलावा भगवान गणेश को दुर्वा अर्पित करें। 
  • उसके बाद भगवान गणेश की कथा पढ़ें और दूसरों को भी सुनाएं।
  • आरती कर पूजा का समापन करें।

अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत व्रत के दौरान क्या खाएं ?

व्रत के दौरान कई लोग निर्जला व्रत भी करते हैं। लेकिन अगर आप फलाहार के साथ व्रत कर रहे हैं तो आप रात को चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद आप साबूदाने की खिचड़ी खा सकते हैं। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि ज्यादा तेल का खाना खाने से आपको स्वास्थ्य समस्या हो सकती है। इसीलिए फलों को भी अपने व्रत में शामिल करें।

भगवान गणेश के मंत्र

  1. गणपतिजी का बीज मंत्र ‘गं’ है। 
  2. इनसे युक्त मंत्र: ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। 
  3. उच्छिष्ट गणपति का मंत्र: ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा 
  4. गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

ये मंत्र जीवन से आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करता है। 

  • ‘ॐ गं नमः’

इस मंत्र का रोजाना जाप जीवन में सुख और समृद्धि लाता है। 

  • ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा। 

ये मंत्र आपके लिए रोजगार के अच्छे अवसर ला सकता है। 

  • ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा। 

विवाह में आने वाली समस्या को दूर करने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। 

  • ॐ गं गणपतये नम: 

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:, निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।। 

ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥

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