संकष्टी चतुर्थी का महत्व, तिथि, अनुष्ठान और पूजा विधि के बारे में जानिए
भारत में संकष्टी चतुर्थी के त्योहार का खास महत्व है। यह त्योहार भारत के उत्तरी और दक्षिणी दोनों ही राज्यों में प्रचलित है। इसके अलावा महाराष्ट्र में इस त्योहार को मुख्य रूप से मनाया जाता है, यहां यह और भी विस्तृत और भव्य है। ‘संकष्टी’ संस्कृत मूल का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘कठिन समय के दौरान उद्धार’, वहीं ‘चतुर्थी’ का अर्थ है ‘ माह का चौथा दिन या भगवान गणेश का दिन’। इस शुभ दिन पर उपासक जीवन में आने वासी सभी बाधाओं को दूर करने और कठिन से कठिन परिस्थिति में भी विजयी होने के लिए भगवान गणेश की पूजा करते हैं। आइए सबसे पहले हम आने वाले साल 2025 और 2026 की आने वाली संकष्टी चतुर्थी के बारे में आपको बता देंते हैं।
संकष्टी और अंगारकी चतुर्थी
साल 2025 की संकष्टी और अंगारकी चतुर्थी
तारीख और दिन | समय | चतुर्थी/अंगारकी | महीने |
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17 जनवरी 2025, शुक्रवार | प्रारंभ - 04:06, 17 जनवरी समाप्त - 05:30, जनवरी 18 | सकट चौथ, लम्बोदर संकष्टी चतुर्थी | माघ |
16 फ़रवरी 2025, रविवार | आरंभ - 23:52, 15 फरवरी समाप्त - 02:15, 17 फरवरी | द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी | फाल्गुन |
17 मार्च 2025, सोमवार | प्रारंभ - 19:33, 17 मार्च समाप्त - 22:09, मार्च 18 | भालचन्द्र संकष्टी चतुर्थी | चैत्र |
16 अप्रैल 2025, बुधवार | आरंभ - 13:16, 16 अप्रैल समाप्त - 15:23, 17 अप्रैल | विकट संकष्टी चतुर्थी | वैशाख |
16 मई 2025, शुक्रवार | आरंभ - 04:02, 16 मई समाप्त - 05:13, 17 मई | एकदंत संकष्टी चतुर्थी | ज्येष्ठ |
14 जून 2025, शनिवार | आरंभ - 15:46, 14 जून समाप्त - 15:51, 15 जून | कृष्णपिङ्गल संकष्टी चतुर्थी | आषाढ़ |
14 जुलाई 2025, सोमवार | प्रारंभ - 01:02, 14 जुलाई समाप्त - 23:59, 14 जुलाई | गजानन संकष्टी चतुर्थी | श्रावण |
12 अगस्त 2025, मंगलवार | आरंभ - 08:40, 12 अगस्त समाप्त - 06:35, अगस्त 13 | बहुला चतुर्थी, हेरम्ब संकष्टी चतुर्थी | भाद्रपद |
10 सितंबर 2025, बुधवार | प्रारम्भ - 15:37, सितम्बर 10 समाप्त - 12:45, सितम्बर 11 | विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी | आश्विन |
10 अक्टूबर 2025, शुक्रवार | आरंभ - 22:54, अक्टूबर 09 समाप्त - 19:38, 10 अक्टूबर | करवा चौथ, वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी | कार्तिका |
8 नवंबर 2025, शनिवार | आरंभ - 07:32, नवंबर 08 समाप्त - 04:25, 09 नवंबर | गणाधिप संकष्टी चतुर्थी | मार्गशीर्ष |
7 दिसंबर 2025, रविवार | आरंभ - 18:24, दिसंबर 07 समाप्त - 16:03, दिसम्बर 08 | अखुरथ संकष्टी चतुर्थी | पौष |
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्थी भारत में विशेष रूप से मनाई जाती है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है। यह हिंदू कैलेंडर के प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। वहीं जब संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को आती है, तो यह अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। अंगारकी चतुर्थी को सभी चतुर्थियों में सबसे शुभ माना जाता है। गणेश जी को हिंदू धर्म में प्रथम पूज्य देवता माना गया है, यही कारण है कि हर शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाती है। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को ही समर्पित है, इसलिए इस दिन उनका व्रत रखा जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व ‘भविष्य पुराण’ और ‘नरसिंह पुराण’ में वर्णित है और इसे स्वयं भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को भी समझाया था, जो सभी पांडवों में सबसे बड़े हैं। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत का पालन करने से जीवन के हर कष्टों से मुक्ति मिल जाती है, और विघ्नहर्ता सारे दुखों का निवारण कर देते हैं। संकष्टी चतुर्थी हर महीने में मनाई जाती है, इसलिए हरेक महीने में श्री गणेश की पूजा अलग-अलग पीता (कमल की पंखुड़ी) और अलग नाम से की जाती है। कैसे करें संकष्टी चतुर्थी का अनुष्ठान, जानिए यहां-
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संकष्टी चतुर्थी का अनुष्ठान
संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के उपासक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं। इसके बाद भगवान गंजानंद का स्मरण करते हुए, उपवास की शुरुआत करते हैं। हालांकि, कुछ लोग आंशिक उपवास रखना भी पसंद करते हैं। अगर आप संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना चाहते हैं, तो आपको ध्यान रखना होगा, कि किसी भी तरह का अन्न भूल से भी आपके पेट में न जाए। अगर आपने अन्न खा लिया, तो आपको व्रत टूट जाएगा। हालांकि, अगर असहयनीय भूख लगने लगती है, या फिर कुछ खाने का मन कर रहा है, तो आप फल, सब्जियां और कंद मूल खा सकते हैं। अधिकतर लोग उपवास के दौरान भारतीय आहार में मूंगफली, आलू और साबूदाना खिचड़ी खाना पसंद करते हैं। आप भी इन पदार्थों का सेवन कर सकते हैं। आपको याद दिला दें कि यदि आप इस व्रत को विधि विधान से नहीं कर पाते हैं, तो आपको इसके नकारात्मक परिणाम भी झेलने पड़ सकते हैं। अगर आप इस व्रत की विधि नहीं जानते हैं, तो कोई बात नहीं, हम आपको इस व्रत की संपूर्ण विधि बताते हैं।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि
संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि वैसे तो ज्यादा कठिन नहीं है, लेकिन फिर भी आपको इसका पालन करने अनिवार्य है। सबसे पहले आपको बता दें कि संकष्टी चतुर्थी की पूजा शाम को चंद्रमा देखने के बाद ही की जाती है। पूजा के लिए सबसे पहले भगवान श्री गणेश की मूर्ति या फिर छायाचित्र को दूर्वा घास और ताजे फूलों से सजा लें। इसके बाद भगवान श्री गणेश के सामने दीपक जलाएं। इसके बाद सामान्य पूजा अनुष्ठान जैसे धूप जलाना और वैदिक मंत्रों का जाप कीजिए। मंत्रों के उच्चारण के बाद आपको इस व्रत की विशिष्ट कथा को सुनना चाहिए।
जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि मोदक भगवान गणेश को अतिप्रिय है। इसके अलावा और भी ऐसे कई पकवान है, जिनका आप नैवेद्य के रूप में भगवान गणेश को भोग लगा सकते हैं, और इसी का प्रसान तैयार कर लोगों में वितरण करना चाहिए। लेकिन याद रखें कथा समाप्ति के तुरंत बाद भगवान गणेश की आरती गाते हुए, उनकी आरती उतारें, उसके बाद ही प्रसादी का वितरण करें। संकष्टी चतुर्थी को दिन चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व है। इस दिन आप की दिशा में जल, चंदन का लेप, पवित्र चावल और फूल का छिड़काव करें, ऐसा करने से आपकी राशि में चंद्र ग्रह का अनुकूल प्रभाव पड़ेगा, जो आपके लिए लाभदायक होगा।
अगर आपकी राशि में चंद्र ग्रह विपरीत प्रभाव डाल रहा है, तो आप चंद्र ग्रह की शांति के लिए पूजा करवा सकते हैं। हमारे वैदिक पंडित आपके लिए इस पूजा को संपन्न करा सकते हैं। पूजा कराने के लिए यहां क्लिक करें…
इस पवित्र दिन ‘गणेश अष्टोत्र’, ‘संकष्टनाशन स्तोत्र’ और ‘वक्रथुंड महाकाया’ का पाठ करना बहुत शुभ माना गया है। आपको बता दें कि अगर आप संकष्टी चतुर्थी को कथा का पाठ या श्रवण नहीं करते हैं, तो आपका व्रत अधूरा रह जाता है। आपको हम सलाह देते हैं, कि इस व्रत की कथा आपको जरूर सुननी चाहिए। आइए इस व्रत की कथा के बारे में हम आपको बताते हैं।
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संकष्टी चतुर्थी की कथा
सकष्टी चतुर्थी को लेकर वैसे तो कई सारी कथाएं प्रचलित है, लेकिन इसे लेकर एक कथा है जो काफी पौराणिक मानी गई है। आप किसी भी व्रत कथा को पढ़कर संकष्टी चतुर्थी का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यहां हम आपको जो कथा बता रहे हैं, वह भी संकष्टी चतुर्थी की एक प्रचलित कथा है। आज हम आपको चार कथाओं के बारे में बताएंगे, जो संकष्टी चतुर्थी को लेकर उल्लेखित है।
संकष्टी चतुर्थी की पहली कथा
पहली कथा के अनुसार, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह में भूलवश या फिर किसी अन्य कारण से भगवान श्री गणेश को निमंत्रण नहीं दिया गया। इसके बाद भी कुछ ही छण बाद भगवान गणेश विवाहस्थल पर आ गए, जहां उनका अपमान करते हुए देवताओं ने बारात वापस लौटने तक पहरेदारी का काम दे दिया। जब नारद जी ने देखा, तो उन्होंने गणेश जी से कहा कि यहां बैठाकर विष्णु जी ने आपका अपमान किया है। उन्हें सलाह दी कि आप अपने मूषक (चूहा) सेना को बारात से आगे भेज दो, वह आगे से रास्ता खोद देगी, जिससे भगवान विष्णु समेत सारे बारातियों के रथ धरती में धंस जाए, और वह आपको ससम्मान बुलावा भेजेंगे।
इसके बाद मूषक सेना ने अंदर से जमीन को पूरी तरह खोद डाली। जब श्री विष्णु की बारात वहां पहुंची, तो उनके रथ जमीन में धंस गए। सभी लोगों ने लाख कोशिश की, लेकिन रथ के पहियों को निकाल नहीं पाए। इतने में ही नारद जी ने कहा- कि आप लोगों ने गणेश जी का अपमान किया है, जो कि उचित नहीं है। अगर आप उनको मनाएं, और ससम्मान बुलाएं, तो आपकी परेशानी का हल हो सकता है, और यह संकट टल सकता है। इसके बाद गणेशजी को बुलाया गया, और उनसे इस संकट के निराकरण का आग्रह किया।
तभी खेत में काम कर रहे किसान को बुलाया गया। किसान ने रथ निकालने की बात सुनते ही हाथ जोड़े, आंखे बंद की और मन में ही ‘श्री गणेशाय नम:’ मंत्र का जाप करने लगा और सभी रथ निकल गए। रथ के ठीक होने के बाद देवाताओं ने उससे पूछा कि तुमने इतनी आसानी से रथ कैसे निकाल दिए। तो किसान ने जवाब दिया कि, है ! देवतागण, आपने गणेशजी को नहीं मनाया होगा, गणेश जी आपके साथ नहीं थे, इसलिए यह संकट आपके साथ था। गणेश के स्मरण मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। किसान की यह बात सुनकर विष्णु भगवान को अपनी गलती समझ में आई, और उन्होंने श्री गणेश से क्षमा मांगी। तभी से संकष्टी चतुर्थी का महत्ता बताई गई है।
संकष्टी चतुर्थी की दूसरी कथा
दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार एक बार देवता कई सारे संकट एक साथ आ गए थे। संकट निवारण के लिए सभी भगवान भोलेनाथ के पास गए, जहां पास ही में कार्तिकेय और श्रीगणेश बैठे हुए थे। देवताओं की समस्या सुनकर शंकर जी ने कार्तिकेय और गणेश से पूछा कि क्या तुम में से कोई इन कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय और गणेश दोनों ने ही इस संकट का निवारण करने में खुद को सक्षम बताया। अब यह मुश्किल हो रहा था कि किसे यह कार्य सौंपा जाए। तभी दोनों की परीक्षा लेने का निर्णय हुआ, और कहा गया कि तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा कर पाएगा, वही देवताओं की समस्या का निराकरण करने जाएगा।
इसके बाद कार्यिकेय तुरंत ही अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, लेकिन गणेश जी का वाहन चूहा था, जिस पर बैठकर पृथ्वी का चक्कर लगाना मुश्किल था। इसलिए गणेश जी ने कुछ सोचा, और अपने माता-पिता के सात बार चक्कर लगाकर वापस बैठ गए। इधर जब कार्तिकेय पृथ्वी के चक्कर लगाकर लौटे, कार्तिकेय खुद को विजेता बताने लगे। जब शिव जी ने गणेश जी से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने के बारे में पूछा, तो गणेश जी ने कहा- ‘माता-पिता के चरणों में सारे लोक हैं।’ तो मैंने तो पृथ्वी नहीं बल्कि सारे लोकों के सात परिक्रमा कर लिए हैं। गणेश जी का यह जवाब सुनकर शंकर जी ने उन्हें देवताओं के संकटों को दूर करने का आज्ञा दी थी। इसी दिन भगवान शंकर ने श्री गणेश को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो व्रत रखकर तुम्हारी पूजा करेगा और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके दैहिक, दैविक तथा भौतिक ताप यानी तीनों ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से सभी तरह के दु:ख दूर होते हैं, और जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। तभी से संकष्टी चतुर्थी का उपवास किया जाता है।
संकष्टी चतुर्थी की तीसरी कथा
गणेश चतुर्थी व्रत की तीसरी कथा भी है, जो काफी प्रचलित है। कहा जाता है कि सत्यसिंधु राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। वह जब भी मिट्टी के बर्तन बनाता था, वे कच्चे रह जाते थे। एक तांत्रिक की सलाह पर, उसने भट्टी में बर्तनों के साथ एक छोटे बच्चे को भी आग में डाल दिया। बच्चे की मां बच्चा न मिलने से परेशान हो गई, और उसने भगवान गणेश से अपने बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। इसके बाद जब दूसरे दिन कुम्हार ने देखा तो आंवा में बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे को कुछ भी नहीं हुआ था। इस घटना से कुम्हार डर गया और राजा के दरबार में जाकर उसने सारी घटना का वर्णन किया। राजा हरिश्चंद्र ने उस महिला को भी बुलवाया, तो महिला ने बताया कि उसने भगवान गणेश से अपने बच्चे को सकुशल रखने की प्रार्थना की। उस दिन चतुर्थी का दिन था। इसीलिए इस दिन को संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाने लगा। इस घटना के बाद से ही महिलाएं संतान व परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चतुर्थी का व्रत करने लगी।
संकष्टी चतुर्थी की चौथी कथा
संकष्टी चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा के किनारे बैठे हुए थे। जहां माता पार्वती के मन में चौपड़ खेलने की इच्छा प्रकट की। भगाव शंकर चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, लेकिन हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह सवाल उठा। तभी भगवान शंकर ने कुछ तिनके एकत्रित किए, और उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और उस पुतले से कहा कि ‘बेटा, हम चौपड़ खेल रहे हैं, लेकिन हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसीलिए तुम फैसला करना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’
इतना कहने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती के बीच चौपड़ खेल शुरू हुआ। खेल तीन बार खेला गया और तीनों बार संयोग से माता पार्वती जीत गई। लेकिन जब उस बालक ने अपना फैसला सुनाया, तो बालक ने भगवान शिव को विजयी बताया। इतना सुनकर माता पार्वती अत्यंत क्रोधित हो गई, और उन्होंने उसे लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे डाला। बालक ने पार्वती माता से माफी मांगते हुए कहा, कि यह मुझसे अज्ञानतावश हुआ है, मैंने किसी द्वेषपूर्ण भाव में ऐसा नहीं किया है।
उसने जब क्षमा मांगी, तो माता पार्वती ने कहा कि यहां पर गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार यदि तुम गणेश व्रत करोगे, ऐसा करने से तुम्हें मेरे दर्शन प्राप्त होंगे, और तुम अपने पैरो से चल भी सकोगे। इसके बाद नागकन्याओं के बताए अनुसार उस बालक ने 21 दिन तक लगातार गणेश जी का व्रत किया। इससे प्रसन्न गणेश जी ने बालक से उसकी इच्छा के अनुरूप फल मांगने के लिए कहा। तब बालक ने कहा- ‘हे लंबोदर गणराज ! आप मुझे इतनी शक्ति प्रदान कीजिए, कि मैं स्वयं पैरों पर चलकर आपके माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पहुंच सकूं।’
इतना सुनते ही बालक को वरदान दिया, और श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद बालक कैलाश पर्वत पहुंच गया और वहां पर अपनी कथा उसने भगवान शंकर को सुनाई। माता पार्वती भगवान शिव के भी चौपड़ वाले दिन से ही नाराज थी। जब उस बालक की बात सुनी, तो भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक गणेश जी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भोलेनाथ को लेकर जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।
भगवान शंकर ने यह व्रत विधि माता पार्वती को भी बताई। जिससे माता पार्वती के मन में पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तो उन्होंने भी 21 दिन तक गणेश जी का व्रत किया और दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी की पूजा-अर्चना की। इस व्रत के 21वें दिन स्वयं कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिलने आ गए। तभी से श्री गणेश को समर्पित संकष्टी चतुर्थी का यह व्रत सारी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाने लगा। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
संकष्टी चतुर्थी पर चंद्रमा का महत्व
संकष्टी चतुर्थी के इस पवित्र दिवस पर चंद्रमा के दर्शन को विशेष बताया गया है। भगवान श्री गणेश के उपासकों का मानना है कि इस दिन व्रत रखने और चंद्रमा के दर्शन करने से एक समृद्ध जीवन जीने का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही उपासकों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। निःसंतान दंपती संतान प्राप्ति के लिए संकष्टी चतुर्थी का व्रत करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी हर चंद्र महीने में मनाई जाती है, इसलिए प्रत्येक महीने में भगवान गणेश की पूजा अलग-अलग पीता (कमल की पंखुड़ी) और नाम से की जाती है।
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