मंदिर की घंटी बजाने की परंपरा के बारे में जानिए

अपने देश में जब पूजा की शुरुआत होती है, तो इस दौरान घंटी बजाने की परंपरा है। मंदिर की घंटी एक ऐसी चीज है, जो अलग-अलग धातुओं के मिश्रण से बनी होती है। इसमें जस्ता, कांस्य और तांबा आदि धातुएं शामिल होती हैं। यह अलग-अलग प्रतिशत में ध्वनि की आवृत्ति तो उत्पन्न करती ही है, साथ में कई तरह के लाभ भी पहुंचाती है।

पहले के जमाने में हाथों से ही घंटियां तैयार की जाती थीं। इन्हें बनाने के लिए एक खास तरीके की विधि का अनुसरण किया जाता था। इसमें घंटी के ऊपरी मुंह को तब तक चिपकाया जाता था, जब तक कि उसे बजाने पर उससे ध्वनि की एक निश्चित आवृत्ति उत्पन्न न हो। वहीं, वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित होने वाली मशीनें आ गई हैं, जो तय हर्ट्ज के आधार पर अलग-अलग तरह की घंटियां तैयार करती हैं। फिर भी इसका मतलब यह नहीं है कि ये बेहतर घंटियां बनाने में कारगर हो सकती हैं। घंटी बनाने में जो सामग्री का इस्तेमाल होता है, उसके द्वारा उत्पन्न की जाने वाली ध्वनि की गुणवत्ता को ये काफी हद तक प्रभावित करते हैं।


मंदिर की घंटी का महत्व

मंदिर की घंटी का धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। हमें इस बात को समझने की आवश्यकता है कि आध्यात्मिकता एक तरह का व्यवहारिक विज्ञान है। इससे मनुष्य के अंदर उच्च चेतना में विकास होता है। घंटी बजने का मतलब यह है कि यदि इसे सीधे 5 मिनट तक बजाया जाए, तो यह 3 किलोमीटर के दायरे में हवा में मौजूद रोगाणुओं का खात्मा कर सकता है। इसे हम धार्मिक या आध्यात्मिक अभ्यास के तौर पर देखते हैं। इसे बजाने के वास्तविक कारण काफी अलग हैं। मानव जीवन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभ पहुंचाता है और कई तरह से कल्याण करता है।

जिन तकनीकों पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है, उनमें से एक ध्वनि तकनीक भी है। मंदिर दरअसल ऊर्जा का घर हुआ करते थे। इस तरीके से इनका निर्माण किया जाता रहा है कि जो कोई भी मंदिर में पहुंचता है, उसके अंदर गजब की उर्जा भर जाती है। वह पूरी तरीके से शुद्ध हो जाता है। मंदिर या फिर शंख में जो लटकी हुई घंटियां होती हैं, वे हवा के एक बड़े हिस्से को साफ कर देती हैं। साथ ही ये हमारे मस्तिष्क के बाएं और दाएं हिस्से को भी प्रतिध्वनित कर देती हैं। घंटियों से जो ध्वनि उत्पन्न होती है, वह एकाग्रता में सुधार लाती है और बड़ी शांति भी प्रदान करती है।

हिंदुओं के पूजा स्थल चाहे वे घर में हों या फिर मंदिरों में, दोनों ही जगहों पर प्राचीन ध्वनि प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाता रहा है। एक मंदिर में तीन कक्षा हुआ करते थे। एक वह जगह थी, जिसे कि देवताओं का गर्भ गृह कहा जाता था। दूसरी वह जगह थी, जहां पर कि लोग आते थे और गर्भ गृह के सामने खड़े होकर प्रार्थना करते थे। इसे अर्ध मंडप भी कहा जाता था। अर्ध मंडप का अर्थ होता है आधा कक्ष।

मंडप के बाद ‘महा मंडप’ हुआ करता था। यह मुख्य हॉल था। इसी जगह पर भक्त जमा हुआ करते थे। गर्भ गृह का अर्थ वास्तव में बहुत ही रोचक है। गर्भ का मतलब गर्भ और गृह का अर्थ है घर। इस तरह से गर्भ गृह का अनुवाद करने पर जो अर्थ निकलता है, वह गर्भ कक्ष के रूप में सामने आता है। हरेक देवता को एक ब्रह्मांडीय गर्भ के तौर पर माना जाता था और उनकी दिव्य उपस्थिति से यह संपूर्ण हो जाता था। इसका मतलब यह हुआ कि देवताओं को इस तरीके से प्रतिष्ठित किया जाता था कि उनसे दिव्य आशीर्वाद ग्रहण करने की उम्मीद बढ़ जाती थी।

मंदिर की घंटियों का जो आध्यात्मिक अर्थ है, वह बताता है कि मंदिर में पीतल की घंटियां जब पूजा के दौरान भक्तों बजाया करते थे, तो आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाने के तरीकों में से यह एक हुआ करता था। जब अच्छी तरह से शंख, घंटी और घड़ियों के तौर पर इन्हें डिजाइन किया जाता है और पूजा के दौरान इन्हें उपयोग में लाया जाता है, तो इससे बहुत ही अच्छी ध्वनि निकलती है और इसे बहुत पवित्र भी माना जाता है। जब यह पवित्र ध्वनि निकलती है, तो पूजा के दौरान जो भक्त मौजूद होते हैं, उनकी एकाग्रता में सुधार आता है। पूजा के दौरान शंख वाली घंटी का उपयोग कई बार इसलिए किया जाता है, ताकि वहां का वातावरण पूरी तरह से साफ और सक्रिय हो जाए।


मंदिर की घंटी की आवाज की ताकत

मंदिर की घंटी का डिजाइन इस तरीके से तैयार होता है कि जब ये बजती हैं, तो इससे जो शक्ति निकलती है, इसकी वजह से इसकी आवाज में वह काफी समय तक मौजूद रहती है। ऐसा पाया गया है कि घंटियों और शंख से निकलने वाली ध्वनि ॐ की ध्वनि से मिलती-जुलती है। केवल मंदिर की घंटियां ही नहीं, बल्कि शंख बजाने से जो ध्वनि निकलती है और मंत्रों के पाठ की जो ध्वनि होती है, ये सभी ध्वनियां जब मंदिर में मिल जाती हैं तो लोग अपने आपको आध्यात्मिक अनुभवों से जोड़ पाते हैं।

खास तौर पर हिंदू परंपरा में पूजा स्थलों में ध्वनि की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है। वैदिक साहित्य में ध्वनि के कलात्मक और वैज्ञानिक पक्ष को अत्यधिक महत्व दिया गया है। वैदिक साहित्य में पांच मूल तत्व अंतरिक्ष, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को हमारी संबंधित इंद्रियों जैसे कि सुनना, सूंघना, देखना, चखना और स्पर्श करना माना गया है। सूक्ष्म तत्वों से स्थूल तक अंतरिक्ष से पृथ्वी तक का विस्तार है।

मंदिर की घंटियां अर्ध मंडप में बजाई जाती हैं तो महा मंडप में बाहर आने पर ध्वनि के दबाव के स्तर में बढ़ोतरी हो जाती है। बुरी आत्माओं को दूर भगाने के तौर पर इसे देखा जाता है। यह पवित्रता को आमंत्रित करता है। एक मंदिर की घंटी को बहुत ही अच्छी तरीके से डिजाइन किया जाना चाहिए, ताकि इसकी गूंज बड़ी ही गहरी हो। ॐ शुभ ध्वनि की तरह एक लंबा तनाव इसके जरिए उत्पन्न होना चाहिए। हिंदू परंपरा में मूल प्रार्थना के शुरू होने से पहले घंटी बजाई जाती है।

साथ ही अगरबत्ती जलाते वक्त, देवताओं को स्नान कराते वक्त एवं प्रसाद चढ़ाते वक्त भी घंटी बजाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इन घंटियों का निर्माण पंचलोहा से होता है। इसका अर्थ पांच मिश्र धातु होता है। पंचलोहा में सोना, चांदी, तांबा, लोहा और शीशा शामिल होते हैं। हालांकि, वर्तमान समय में देखा जाए तो इसके संबंध में जानकारी की कमी एवं बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं होने की वजह से घंटियां अब कांस्य, जस्ता एवं अन्य आसानी से उपलब्ध होने वाली मिश्र धातुओं से ही बनाई जा रही हैं। ऐसे में पंचलोहा वाली घंटी के समान इनका प्रभाव नहीं होता है।

आमतौर पर जो एक हाथ से बजाने वाली घंटी होती है, उसकी मूल आवृत्ति 1 हजार 292 हर्ट्ज होती है। वहीं मंदिरों में बड़ी-बड़ी लटकी हुई घंटियां मौजूद होती हैं। अलग-अलग आकार के होने की वजह से घर के मंदिर में प्रयोग में आने वाली हाथ से बजाई जाने वाली घंटियों और मंदिरों में लटकी हुई बड़ी घंटियों की ध्वनियों का दबाव भी अलग-अलग हो जाता है। हालांकि, उनका ध्वनि स्पेक्ट्रम काफी हद तक मेल खाता है। हाथ से बनी हुई घंटियों में ध्वनि अत्यधिक उच्च आवृत्ति की होती है। वह इसलिए कि मंदिरों की घंटियों में जो बड़े पेंडुलम लटके हुए होते हैं, उनकी तुलना में ये बहुत ही कम समय में दो जगहों पर टकरा जाते हैं।

घंटियों का आकार कितना बड़ा होता है, उनकी गूंज शरीर में उतनी ही ज्यादा महसूस होती है। यह देखा गया है कि यदि एक दिन में ढाई घंटे के अंतराल के साथ घंटी बजती है, तो वहां जितनी भी हवा मौजूद होती है, उनमें मौजूद रोगाणुओं का सफाया हो जाता है। ये रोगाणु बीमारियों का कारण बनते हैं। रोगाणुओं को दूर भगाने को प्रतीकात्मक तौर पर बुराइयों को दूर भगाने के रूप में भी देखा जाता है।


मंदिर की घंटी की कहानी

हिंदू धर्म में इसके पीछे एक रोचक कहानी है। एक पुजारी ने एक बार कहा कि भगवान विष्णु आमतौर पर सोए रहते हैं। जब हम मंदिर जाते हैं तो घंटी बजा कर उन्हें जगाना पड़ता है। इस पर एक बच्चे ने पुजारी से यह सवाल कर दिया कि भगवान जब हर जगह हैं, तो हमें मंदिर जाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ती है। साथ ही जब वे जागृत भी हैं, तो हमें उन्हें जगाने की जरूरत क्यों होती है। इन सवालों का पुजारी ने बहुत ही खूबसूरत तरीके से जवाब दिया। पुजारी ने कहा कि जिस तरीके से हवा हर जगह है, मगर हमें इसका अनुभव करने के लिए एक बड़े हाथ वाले पंखे की जरूरत होती है, उसी तरीके से भगवान भी हर जगह मौजूद हैं, लेकिन उन्हें अनुभव करने के लिए हमें एक निर्दिष्ट और पवित्र स्थान पर इकट्ठा होना पड़ता है।


मंदिर की घंटी का प्रभाव

यह एक ध्रुवीकृत केंद्र होता है। यहां एक निर्मित वातावरण रहता है। इसकी वजह से इसका अनुभव अधिक होता है। साथ ही अन्य जरूरतें भी पूरी हो जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हम उन्हें जगाने के लिए घंटी नहीं बजाते हैं, बल्कि हम घंटी बजाते हैं, ताकि हमारे अंदर जो भगवान मौजूद हैं, उन्हें हम जगा सकें। ताकि हम इस बात की पुष्टि कर सके कि हम यहां पूरी चेतना और समर्पण की इच्छा के साथ पहुंचे हैं। ध्यान प्रक्रिया पर हम यहां ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। एक तरीके से उच्च चेतना की खोज के लिए अपनी मन की उपस्थिति की ध्वनि रूप में यहां हम प्रशंसा करते हैं। साथ ही परमात्मा से आशीर्वाद भी प्राप्त करते हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा इसे लेकर कई तरह के प्रयोग किए गए हैं। एक प्रयोग में काली चादर पर नमक रख दिया गया था। इस चादर को एक खोखले ढांचे पर रखा गया था और इस पूरी प्रणाली को इस तरीके से तैयार किया गया था कि थोड़े कर्मचारियों का उपयोग करके इसमें घंटियों की अलग-अलग ध्वनि उत्पन्न की जा रही थी। विशेष प्रकार की घंटी वाली आवृत्ति के साथ नमक सतह पर फैल गया था और ऐसे पैटर्न तैयार हो गए थे, जो बड़े ही कलात्मक नजर आ रहे थे। सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि हर पैटर्न अपने आप में अनूठा था। सभी पैटर्न में भुजाएं और कोण एकदम समान और मेल खाते हुए नजर आ रहे थे। इससे हम यह समझ सकते हैं कि आवृत्ति में परिवर्तन किस तरीके से मायने रखता है।

प्राचीन लोग इसे बहुत ही अच्छी तरह से समझ चुके थे। हमारे पास वेद हैं, जो संपूर्ण ध्वनि की तकनीक को दर्शाते हैं।


चक्रों और मंदिर की घंटियों का संबंध

किसी भी इंसान में 114 चक्र होते हैं। इनमें से दो हमारे शरीर के बाहर होते हैं। बाकी चक्र, जिनकी संख्या 112 है, ये हमारे शरीर में मौजूद हैं और इनकी अलग-अलग आवृत्तियां हैं। हर बदलती आवाज हमारे लिए मायने रखती है। हमारे विचार हमें कई तरीके से परिवर्तित कर सकते हैं। पूजा कक्षा में लटकी हुई घंटियों से जो ध्वनि पैदा होती है, वह हमारे अंदर शांति का एक पैटर्न तैयार कर देती है। संबंधित चक्रों से जो गूंज निकलती है, उसके आधार पर मुख्य रूप से 7 मूल चक्र वर्गीकृत किए गए हैं। घंटियों की आवाज से हमारे विचारों को शांति मिलती है और मस्तिष्क के सभी लोब्स के बीच एकता आती है।


निष्कर्ष

मंदिर की घंटी को जितना हम देखते और सुनते हैं, यह उससे कहीं अधिक है। हमारी इंद्रियों के महसूस करने की क्षमता को यह कई तरीके से बदल देता है। यह एक बड़ा ही जटिल प्राचीन विज्ञान है। यह केवल जानने योग्य ही नहीं, बल्कि अनुभव करने योग्य भी है।