वास्तु (Vastu)

वास्तु (Vastu)

वास्तु शास्त्र सिर्फ गणितीय कैलकुलेशन, ज्योमैट्रिक डिजाइन और सुंदर बिल्डिंग का नक्शा बनाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह प्राकृतिक तत्वों में संतुलन स्थापित कर उन्हें अपने अनुकूल बनाने की विद्या है। वास्तु का मुख्य उद्देश्य पूरी जमीन का, घर का तथा कमरे की हर एक इंच का प्रयोग करना है।

यदि किसी बिल्डिंग को बनाते समय उसमें वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन किया जाए तो उस स्थान पर नेगेटिव वाइब्स खत्म होकर पॉजिटिव एनर्जी आती है। सबसे महत्वपूर्ण बात, वास्तु केवल रूम्स के लिए ही नहीं होता है बल्कि किचन, बेडरूम, लिविंग रूम, डाइनिंग रूम तथा घर के बाहरी हिस्सों के लिए भी होता है।

वास्तु को समझने के लिए हमें सबसे पहले यह समझना होगा कि हर घर का अपना एक एनर्जी फील्ड होता है जिसमें हम रहते हैं। इस एनर्जी फील्ड में वास्तु पंचतत्वों (जल, थल, अग्नि, वायु और आकाश) का परफेक्ट संतुलन बनाने का काम करता है। विज्ञान की भाषा में कहें तो यह पर्यावरण का विज्ञान है जो किसी स्थान विशेष को आपके दिमाग और आत्मा से सीधे कनेक्ट करता है।

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वास्तु शास्त्र हमारे घर के लिए क्यों अच्छा है?

हमारी मातृ प्रकृति सूर्य, वायु, चंद्रमा, जल, अग्नि और पृथ्वी जैसे ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोतों से समृद्ध है। सूर्य की किरणें, हवाएँ और अन्य खगोलीय ऊर्जाएँ हमारे जीवन को कई तरह से प्रभावित करती हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों का संतुलन और उपयोग करके, हम अच्छे भाग्य, स्वास्थ्य और सफलता से भरपूर जीवन जी सकते हैं। दिशाएं, खगोल विज्ञान, वास्तुकला, डिजाइन और ज्योतिष वास्तु शास्त्र की मूल बातें हैं।

क्या आप घर में शांति के लिए वास्तु उपायों के बारे में जानते हैं – क्या करें और क्या न करें?

 

आमतौर पर दिशाएँ चार होती हैं, पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। इसके अलावा, चार इंटरकार्डिनल दिशाएँ (उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण-पूर्व और उत्तर-पश्चिम) हैं। हर दिशा का अपना-अपना महत्व होता है। पूर्व और पश्चिम दिशाएं समृद्धि और सौभाग्य के लिए जानी जाती हैं, जबकि उत्तर दिशा धन के लिए और दक्षिण दिशा धर्म के लिए जानी जाती है।

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