जया एकादशी व्रत 2023

जया एकादशी व्रत 2023

जया एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त

एकादशी तिथि - 1 फरवरी 2023, बुधवार तिथि और समय
एकादशी तिथि आरंभमंगलवार, 31 जनवरी, 2023, सुबह 11:53 बजे से
एकादशी तिथि समाप्तबुधवार, 1 फरवरी, 2023 दोपहर 02.01 बजे तक
पारण (व्रत तोड़ने का) समय गुरुवार, 2 फरवरी, सुबह 07:09 से 09:19 बजे तक
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समयशाम 04 बजकर 26 मिनट

जया एकदाशी व्रत पर पारण का महत्व

एकादशी के व्रत को समाप्त करने को ही पारण कहा जाता है। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले खत्म हो गयी हो, तो इस स्थिति में पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान माना जाता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु जया एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को कहा जाता है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय सुबह का होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को दोपहर के समय व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। यदि कोई सुबह के समय पारण करने में सक्षम नहीं है, तो उसे दोपहर के बाद पारण करना चाहिए।

कभी-कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। ऐसी स्थिति में परिवारजनों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं। भगवान विष्णु के प्यार और स्नेह के इच्छुक भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।

जया एकादशी व्रत पूजा विधि

  • जया एकादशी का व्रत करने वालों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर जल्दी स्नान कर लेना चाहिए। 
  • इसके बाद पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए, और गंगाजल या किसी पवित्र जल का छिड़काव करना चाहिए। 
  • अब भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या उनके चित्र को स्थापित करना करें।
  • प्रतिमा स्थापन के बाद पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना करनी चाहिए। 
  • पूजा के दौरान भगवान कृष्ण के भजन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए। 
  • प्रसाद, नारियल, जल, तुलसी, फल, अगरबत्ती और फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए। 
  • इसके अलावा पूजा के दौरान मंत्रों का जाप करना चाहिए। 
  • इसके बाद अगली सुबह यानि द्वादशी पर पूजा के बाद ही पारण करना चाहिए।

जया एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में नंदन वन में एक उत्सव का आयोजन किया गया था, जहां सभी देवतागणों के साथ ऋषि-मुनि भी पधारे थे। इस उत्सव में माल्यावान नाम का एक गंधर्व गायक और पुष्यवती नाम की एक नृत्यांगना नृत्य कर रही थी। पुष्यवती माल्यावान के रूप पर मोहित होकर उसे रिझाने का प्रयास करने लगी। जिसका प्रभाव माल्यावान पर पड़ा, तो वह भी पुष्यवती की ओर आकर्षित हो गया और सुरताल भूल गया। उसका संगीत लयविहीन होने से उत्सव का रंग फीका पड़ने लगा, जिससे देवराज इंद्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने दोनों को पृथ्वी लोक पर भेज दिया। 

मृत्यु लोक में हिमालय के जंगल में वह दोनों पिशाचों का जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें अपने किए पर पछतावा भी था, और इस पिशाची जीवन से दुखी भी दे। संयोगवश एक बार माघ शुक्ल की जया एकादशी को दोनों ने भोजन नहीं किया, केवल कंद मूल का सेवन किया। उन्होंने एक पीपल के पेड़ के नीचे रात गुजारी और अपनी गलती का पश्चताप करते हुए आगे गलती न दोहराना का प्रण लिया। इसके बाद सुबह होते ही उन्हें पिशाची जीवन से मुक्ति मिल गई। उन्हें इस बात का आभास ही नहीं था कि उस दिन जया एकादशी थी और अंजाने में उन्होंने जया एकादशी का व्रत कर लिया। यही वजह है कि भगवान विष्णु की कृपा उन पर हुई और वे दोनों पिशाच योनी से मुक्त हो गए। माल्यवान और पुष्यवती के स्वर्ग में आते देखा, तो आश्चर्यचकित होकर पूछा, तो उन्होंने दोनों से श्राप से मुक्ति के बारे में पूछा। इसके बाद उन्होंने जया एकादशी के व्रत के प्रभाव के बारे में संपूर्ण रूप से बताया। तभी से ऐसा माना जाता है कि जया एकादशी का व्रत करने से लोगों को पापों से मक्ति मिलती है।

निष्कर्ष

पौराणिक कथाओं के अनुसार जया एकादशी के दिन पवित्र मन में किसी प्रकार की द्वेष भावना को नहीं लाना चाहिए और सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। मन में द्वेष, छल-कपट, काम और वासना की भावना नहीं लानी चाहिए। इसके अलावा नारायण स्तोत्र एवं विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना बेहद लाभकारी साबित होगा। इस व्रत का पालन पूरे विधि-विधान से करने से माता लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु की कृपा बरसती है।

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