शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) 2024: देवी लक्ष्मी की पूजा के पीछे का महत्व

शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) 2024: देवी लक्ष्मी की पूजा के पीछे का महत्व

भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) को कोजागरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन किसान अपनी फसल की कटाई कर नए अनाज का भोग देवी लक्ष्मी को अर्पित करते हैं। सुख, समृद्धि और सम्पन्नता के लिए हिंदू धर्मावलंबी इस दिन मां लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं। शरद पूर्णिमा को वर्षा ऋतु का अंत तथा शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है।

शरद शब्द ही शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। शरद पूर्णिमा का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन समुद्र मंथन में मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था और जो कोई भी उनकी विशेष पूजा करता है उसे लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। कई भक्त इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए व्रत भी रखते हैं।

शरद पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा का चन्द्रमा अपनी पूरी चमक के साथ दिखाई देता है। आयुर्वेद से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा में अमृत के गुण होते हैं। अत: बहुत से स्थानों पर खीर बनाकर उसे चन्द्रमा की रोशनी में रख दिया जाता है और अगले दिन प्रसाद के रूप में खाया जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से उस खीर में अमृत के समान औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं। इस दिन से ही मौसम बदलने लगता है और सर्दी का मौसम शुरू हो जाती है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व और इसके पीछे की कहानी।

शरद पूर्णिमा 2024 की तिथि और समय

EventMuhurat
शरद पूर्णिमा 2024बुधवार, 16 अक्टूबर 2024
पूर्णिमा तिथि का आरंभ16 अक्टूबर 2024 को रात्रि 08:40 बजे
पूर्णिमा तिथि का समापन17 अक्टूबर 2024 को शाम 04:55 बजे

शरद पूर्णिमा की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि को देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और पूरी धरती का भ्रमण करती हैं। उस दौरान चन्द्रमा की रोशनी में भी लक्ष्मी की दिव्य चमक दिखाई देती है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं उन्हें मनवांछित धन और समृद्धि प्राप्त होती है।

लोग शरद पूर्णिमा को कोजागोरी पूर्णिमा के रूप में क्यों मनाते हैं? (Why People Celebrate Sharad Purnima as Kojagori Purnima)

मुख्य रूप से कोजागोरी पूर्णिमा भारत के पूर्वी भाग में विशेषकर पश्चिम बंगाल में मनाई जाती है। बंगाल के लोग इस दिन को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। वे लक्ष्मी पूजा का आयोजन करते हैं, पूरा दिन विभिन्न अनुष्ठानों के जरिए लक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। यहां पर देवी लक्ष्मी को मां लोकखी के नाम से भी जाना जाता है, और उनकी प्रतिमा की पूजा पूरी भक्ति के साथ की जाती है। फर्श पर रंगोली सजा कर लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है। पूजा के समय देवी लक्ष्मी की मूर्ति को फूल, घर की मिठाई और दूध से बने उत्पाद अर्पित किए जाते हैं। मां लोकखी के लिए लोग नाडु की घर की बनी मिठाई तैयार करते हैं।

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शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है (Sharad Purnima Is Also Known As Kumar Purnima)

भारत के ओड़िशा राज्य में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। ओडिशा के लोग इस दिन को देवताओं के सेनापति तथा युद्ध के देवता भगवान कार्तिकेय की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन, भगवान कार्तिकेय की पूजा युवा लड़कियों द्वारा आस्था और भक्ति के साथ की जाती है। उनका मानना है कि ऐसा करने से लड़कियों को प्रेम तथा खूब देखभाल करने वाला जीवनसाथी प्राप्त होता है।

शरद पूर्णिमा का उत्सव (Celebrations Of Sharad Purnima)

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। महाभारत के अनुसार शरद पूर्णिमा की कथा भगवान कृष्ण के जीवन से भी जुड़ी हुई है। किंवदंतियों के अनुसार जब भगवान विष्णु ने कृष्ण रूप में जन्म लिया तो उनके साथ ही उनके भक्तों ने भी गोपियों के रूप में जन्म लिया। शरद पूर्णिमा की रात्रि को उन्होंने कृष्ण के साथ महारास का आयोजन किया और अपने ईश्वर के साथ एकाकार हो गए। इसी कारण से इस दिन को रास पूर्णिमा भी कहा जाने लगा। कृष्ण भक्त इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाते हैं और भगवान विष्णु की प्रार्थना करते हैं। शरद पूर्णिमा वर्ष में एकमात्र ऐसा दिन है जब चंद्रमा अपनी सभी सोलह कलाओं को दिखाता है। ये कलाएं मानव जीवन के विभिन्न पक्षों से जुड़ी हुई मानी गई हैं।

बहुत से अन्य भक्त शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूजा करके चंद्र देव को याद करते हैं। विवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं और देवताओं को खीर का विशेष भोग लगाती हैं। भक्त रात भर चांदनी के नीचे खीर का कटोरा रखते हैं ताकि चंद्रमा की किरणें इसे उपचार के उद्देश्य से उपयोगी बना सकें। फिर, वे अगले दिन खीर का प्रसाद बांटते हैं। यह एक पारंपरिक प्रथा है जिसे हर भारतीय घर में शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।

अनुष्ठान कैसे करें (Steps Of Performing Rituals)

शरद पूर्णिका को किस प्रकार पूजा की जाएं, इसका विवरण यहां दिया जा रहा है

  • रात्रि में मां लक्ष्मी की मूर्ति के सामने दीपक जलाएं।
  • उन्हें मिठाई के साथ गुलाब के पुष्प अर्पित करें।
  • इसके बाद मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप कर देवी की पूजा करें।
  • “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:” मंत्र का जाप करें।
  • देवी की आरती करके अपनी पूजा समाप्त करें।
  • मिठाइयों का प्रसाद दूसरों में बांटें तथा स्वयं भी खाएं।

5 चीजें आपको शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी को अवश्य अर्पित करनी चाहिए। (5 Things You Must Offer To Goddess Lakshmi On Sharad Purnima)

शरद पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी का उद्भव हुआ था, अत: इस दिन का विशेष महत्व है। इस दिन देवी लक्ष्मी को उनकी पसंद की वस्तुएं अर्पित कर सहज ही प्रसन्न किया जा सकता है। लक्ष्मी पूजा करते समय यहां बताई गई पांच चीजें अवश्य ही समर्पित करनी चाहिए।

  • श्रृंगार
  • मखाने
  • दही
  • पत्ते
  • बताशे

जब आपकी पूजा समाप्त हो जाए, तब इन वस्तुओं को परिवार सहित अन्य भक्तों में वितरित कर देना चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

तुलसी पूजा करने का महत्व (Importance of Performing Tulsi Puja)

शरद पूर्णिमा पर, लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ तुलसी के पौधे की भी पूजा की जाती है। इस शुभ दिन पर लोग सुबह जल्दी उठते हैं और तुलसी के पौधे के सामने दीया जलाते हैं। फिर वे सिंदूर, पुष्प आदि समर्पित कर तुलसी के पौधे की पूजा करते हैं। प्रत्येक हिंदू धर्मावलंबी के घर पर तुलसी का पौधा सींचा जाता है। भक्तों का मानना है कि तुलसी के पौधे की पूजा करने से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी दोनों को ही प्रसन्न किया जा सकता है। जो भी भक्तजन पूरी आस्था और विश्वास के साथ पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं मां लक्ष्मी की कृपा से पूर्ण हो सकती हैं।