जनेऊ संस्कार (Janeu Sanskar) : जानें इस बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें

जनेऊ संस्कार (Janeu Sanskar) को यज्ञोपवीत या उपनयन के नाम से भी जाना जाता है, जो प्राचीन अनुष्ठानों में से एक है। यह एक गुरु से एक छात्र द्वारा स्वीकृति का प्रतीक है। एक समय था गुरु अपने गुरुकुलों में छात्रों को प्रवेश देते समय उनका जनेऊ संस्कार करवा कर ही विद्यादान का कार्य करते थे। यज्ञोपवीत 16 वैदिक संस्कारों में प्रमुख संस्कारों में से एक है।

वास्तव में जनेऊ एक पवित्र धागा है, जिसे गुरु पवित्र मंत्रों का जप करते हुए अपने शिष्यों को धारण करवाते हैं। यह पवित्र धागा (जनेऊ) बालक के बाएं कंधे पर दाहिनी ओर इस प्रकार से बांधा जाता है जो उसकी छाती को पार कर जाता है। 16 वर्ष का होने पर ही बालक का उपनयन संस्कार किया जाता है। उपनयन का अर्थ ही ईश्वर के समीप जाना है। यह समारोह इसलिए आयोजित किया जाता है ताकि व्यक्ति समाज में प्रवेश कर अपने सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों का पालन कर सकें। एक तरह से जनेऊ संस्कार व्यक्ति के पुनर्जन्म का प्रतीक है, यह माना जाता है कि इस संस्कार के द्वारा व्यक्ति अपनी अज्ञानता को त्याग कर ज्ञान से भरे नए शरीर को धारण करता है। लोगों का मानना है कि जनेऊ संस्कार बच्चे के आध्यात्मिक तथा सामाजिक जीवन में अहम भूमिका निभाता है। प्राचीन काल में, युवा लड़के यज्ञोपवीत प्राप्त करने के बाद ही अपनी शिक्षा प्राप्त करते थे।


यज्ञोपवीत संस्कार का महत्व (Importance of Yagnopavita Sanskar)

जब कोई व्यक्ति जनेऊ संस्कार प्राप्त करता है, तो उसे पवित्र धागा पहनने की आवश्यकता होती है। यह धागा त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महादेव से जुड़ा है। ये तीन सूती धागे क्रमशः देवताओं की तिकड़ी को दर्शाते हैं। वेदों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ब्रह्मांड के निर्माता हैं, भगवान विष्णु सृष्टि का संचालन और रक्षण का कार्य करते हैं तथा संहार का कार्य भगवान शिव के हाथों में हैं। अतः जनेऊ (धागा) अपवित्र नहीं होना चाहिए। यदि आप पवित्र धागा किसी कारणवश खराब हो जाता है तो पुराने को हटा कर नया जनेऊ धारण कर लेना चाहिए। इसी तरह, यज्ञोपवीत का अर्थ है देवी गायत्री की पूजा। इस पवित्र धागे को धारण करने वाले व्यक्ति को प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।

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जनेऊ के प्रकार (Types of Janeu)

जनेऊ मुख्यतः दो प्रकार का होता है।

  1. तीन सूत्री जनेऊ
  2. छह सूत्री जनेऊ

जो व्यक्ति ब्रह्मचारी रहता है तथा गृहस्थ जीवन का त्याग करता है, वह तीन सूत्री जनेऊ पहनता है। जबकि, एक आदमी जो पहले से शादीशुदा है वह छह-सूत्रीय जनेऊ पहनता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी के तीन और धागे पहनने की भी आवश्यकता होती है।

प्राचीन काल में जनेऊ संस्कार (Janeu Sanskar In Ancient Times)

उपनयन संस्कार का अर्थ है जीवन के ज्ञान की ओर ले जाने का कार्य। जब एक बालक को उसके गुरु द्वारा जनेऊ संस्कार के बाद यज्ञोपवीत दिया जाता है। यह समारोह एक बालक के दूसरे जन्म का प्रतीक है, जो उसके ज्ञानवान होने तथा ऊर्जावान होने की शुरूआत करता है। इसके बाद ही उसे अपने गुरु से ज्ञान और मार्गदर्शन प्राप्त होगा, और वह अन्य समस्त कर्तव्यों को सही तरह से निभा पाएगा।

प्राचीन काल में प्रत्येक बच्चे और उसके शिक्षक के लिए यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया जाता था। पवित्र धागा पहनने वाले बच्चे को बटुक या ब्रह्मचारी कहा जाता था। यह धागा समारोह एक लड़के के जीवन में औपचारिक शिक्षा की शुरुआत का भी सुझाव देता है। फिलहाल इस समारोह में हर उम्र के लोग शामिल होते हैं। जनेऊ संस्कार का अभ्यास बचपन के दिनों से शुरू होता है, और इसमें संस्कृति, धर्म, गणित, ज्यामिति, रंग, लेखन, पढ़ना और पारंपरिक मूल्यों का अध्ययन शामिल है।

क्या जनेऊ संस्कार में लड़कियां हिस्सा लेती हैं? (Do Girls Take Part In Janeu Sanskar?)

जनेऊ संस्कार का पालन करने वाली बालिकाएं ब्रह्मवादिनी कहलाती हैं। उन्हें भी यज्ञोपवीत धारण करवाया जाता था। अन्य लड़कियां जो इस तरह की चीजों का अध्ययन करने से परहेज करती हैं, वे सीधे शादी कर लेती हैं, और उन्हें सद्योवधु के रूप में जाना जाता है। कुछ लड़कियां जो जनेऊ संस्कार लेना चाहती हैं, वे भी अपने विवाह समारोह के दौरान अनुष्ठानों का पालन कर सकती हैं। इस प्रक्रिया में युवा लड़कियां अपने बाएं कंधे पर एक पवित्र धागा पहनती हैं। आज की दुनिया में, कई धर्म लड़कियों और लड़कों को अपने स्कूल के दिनों की शुरुआत से पहले जनेऊ संस्कार के पारंपरिक समारोह को करने की अनुमति देते हैं। कुछ वैदिक ग्रंथ, जैसे अश्वलायण गृह्य सूत्र और यम स्मृति, सुझाव देते हैं कि लड़कियां भी यज्ञोपवीत संस्कार प्राप्त करने के बाद अपनी पढ़ाई शुरू कर सकती हैं। गार्गी और लोपामुद्रा जैसे विद्वान उपनयन संस्कार प्राप्त करने के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा, मैत्रेयी, घोष, उर्वशी, सची और इंद्राणी को पहले हिंदू धर्म के इतिहास में अपना जनेऊ संस्कार मिला था।

जनेऊ संस्कार मुख्य रूप से ब्राह्मणों द्वारा क्यों आयोजित किया जाता है? (Why is Janeu Sanskar organised mainly by Brahmins?)

शास्त्रों के अनुसार जनेऊ धारण करने से व्यक्ति ब्राह्मण बनता है। वह किसी भी वर्ण या जाति का हो परन्तु जनेऊ धारण करने के बाद ही उसमें धार्मिक कार्यों को करने की योग्यता आती है। यदि हम बौधायन गृह्य सूत्र में विश्वास करते हैं, तो यह सुझाव देता है कि हमारे समाज के प्रत्येक सदस्य को अपने गुरुओं से जनेऊ संस्कार लेना चाहिए।

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जीवन भर जनेऊ संस्कार का पालन करना चाहिए (Janeu Sanskar Should Be Followed Throughout The Lifetime)

यदि जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति का पवित्र धागा किसी भी ओर से क्षतिग्रस्त या अपवित्र हो जाता है, तो उसे इसे नए धागे के साथ बदलना चाहिए। कई लोग जनेऊ पहनकर जब भी शौच के लिए जाते हैं तो इसे दाहिने कान पर लगाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका मानना है कि कानों पर जनेऊ लगाने से यह ऊंचा हो जाता है और अपवित्र नहीं होता।

यदि एक बार बालक का जनेऊ संस्कार हो जाए तो उसे जीवन भर जीवन भर जनेऊ धारण करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर ही जनेऊ को नए धागे से बदला जा सकता है। अन्यथा एक व्यक्ति को जीवन भर अपने कंधे पर एक पवित्र धागा रखना चाहिए।


समापन

जनेऊ संस्कार एक अत्यन्त प्राचीन समय का अनुष्ठान है जिसका वर्तमान में भी पालन किया जाता है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार बालक छोटी उम्र में ही अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने से पहले एक पवित्र धागा पहनना शुरू कर देते हैं। यह पवित्र धागा व्यक्ति के शैक्षिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक बार जब व्यक्ति की शादी हो जाती है, तो उसे जीवन भर छह-सूत्रीय जनेऊ धारण करने की आवश्यकता होती है, इसमें तीन उसके स्वयं के तथा तीन उसकी पत्नी के होते हैं। यज्ञोपवीत धारण किए व्यक्ति को अपनी जनेऊ का विशेष ध्यान रखना चाहिए क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से होता है।