जाने कैसे अलग है जैन ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष से


ज्योतिष के बारे में क्या कहते हैं वेद?

वैदिक ज्योतिष प्राचीन काल से भारत का एक अभिन्न अंग रहा है। इसका प्रयोग भाग्य का निर्धारण करने के लिए किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में जन्म के सही समय पर ग्रहों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, ज्योतिषियों द्वारा जन्म कुंडली बनाई जाती है। चार्ट के आधार पर जातक के भविष्य की भविष्यवाणी की जाती है। शुभ या अशुभ घटनाओं को पहले समझने की कोशिश की जाती है। यदि यह घटनाएं शुभ है, तो कोई समस्या नहीं है, लेकिन यदि भविष्य में अशुभ घटनाएं या लक्षण दिख रहे हैं, तो ज्योतिषीय समाधान द्वारा उसका निवारण किया जाता है। ज्योतिषी यह समाधान जन्म के समय ग्रहों की स्थिति की गणना के आधार पर देते हैं। इसी तरह जैन धर्म भी ज्योतिष को मानता है।


जैन ज्योतिष: मौलिक अंतर और वैदिक ज्योतिष के साथ समानताएं

ज्योतिष में जैन धर्म और वैदिक ज्योतिष से सिर्फ एक बिंदु पर भिन्न है। जैन धर्म में माना जाता है कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद आत्मा दूसरे शरीर में जाने के लिए लगभग 3 से 4 प्रहर लगाती है। जबकि वैदिक ज्योतिष में माना जाता है, कि आत्मा को दुसरे शरीर में जाने के लिए कई दिन लग जाते हैं। बच्चे के जन्म के समय जैन ज्योतिष में भी यह ध्यान रखा जाता है। जब शिशु का जन्म होता है और भोजन की नाल को मां से अलग कर दिया जाता है, उसी समय को बच्चे के जन्म का सही समय माना जाता है। इसी के आधार पर कुंडली बनती है और भविष्य देखने का प्रयास किया जाता है।

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जैन और वैदिक के प्राचीन ज्योतिषों में कुछ समान नियम हैं। वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए ग्रहों की पूजा के माध्यम से उनकी भरपाई करने का प्रयास किया जाता है। उसी तरह जैन ज्योतिष में देवताओं की पूजा को उपाय माना जाता है। जैन ज्योतिष के अनुसार आह्वान करने वाले देवताओं को एक विशिष्ट ग्रह से जोड़ा गया है।

ग्रहों का प्रतिनिधित्व करने वाले जैन देवता

स्वामी पद्म प्रभु- सूर्य ग्रह

स्वामी चंद्र प्रभु- चंद्रमा ग्रह

भगवान वासुपूज्य- मंगल ग्रह

भगवान विमलनाथ- बुध ग्रह

भगवान ऋषभदेव- बृहस्पति ग्रह

भगवान सुविधिनाथ- शुक्र ग्रह

भगवान मुनिसुव्रत- शनि ग्रह

भगवान नेमिनाथ- राहु ग्रह

भगवान मल्लिनाथ- केतु ग्रह

जैन ज्योतिष में कुंडली में ग्रहों के

आधार पर ऊपर बताए गए, देवताओं की पूजा करने से समस्याओं का समाधान मिलता है ऐसा माना जाता है।


महत्वपूर्ण मंत्र और जैन ज्योतिष

जीवन पर ग्रहों के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए मंत्र का पाठ और ध्वनि ऊर्जा का उपयोग भी किया जाता है। लोग इसका उपयोग किसी विशिष्ट ग्रह के प्रभाव को कम करने और कमजोर ग्रह के प्रभाव को बढ़ाने के लिए करते हैं, ताकि जातक अच्छा जीवन जी सकें। जैन ज्योतिष के अनुसार कुछ आवश्यक मंत्र नीचे लिखे गये है, साथ में उनका उद्देश्य भी बताया गया है।

  • एक ग्रह का आह्वान करने के लिए पंचिंदिय सूत्र का पाठ।
  • मुनिसुव्रत स्वामी की पूजा और मंत्र शनि की पनौती से बचने के लिए।
  • नवग्रह दोष से बचने के लिए जैन मंत्र “ॐ आसिया उसाय नमः(“Om Asiya Usaay Namah” )”

जैन ज्योतिष में पूजा का प्रयोग ज्योतिषी समाधान के रूप में किया जाता है। जैसे पार्श्व पद्मावती पूजन पितृ दोष या अन्य ऐसे दोषों से बचने के लिए किया जाता है। कालसर्प योग, दरिद्र योग, आश्लेषा योग, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र से बचने के लिए “श्री विश्वमंगल नवग्रह पार्श्वनाथ प्रभु” की पूजा करना और नवग्रह शांति के लिए भी इनकी पूजा उपाय के रूप में की जाती है।