भीष्म पंचक 2024: जानिए ये पांच दिन क्यों महत्वपूर्ण हैं

भीष्म पंचक 2024: जानिए ये पांच दिन क्यों महत्वपूर्ण हैं

भारतीय परंपराओं में भीष्म पंचक के पांच दिवसों को काफी मंगलकारी बताया गया है। वैसे तो जब भी कोई कोई पंचक लगता है, तो कहा जाता है कि कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। हालांकि, भीष्म पंचक इकलौता ऐसा पंचक जिसे, मंगलकारी बताया गया है। इस समय निसंतान दंपति व्रत भी रखते हैं। ‘भीष्म पंचक’ व्रत का हमारे पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है। साल 2024 में भीष्म पंचक 11 नवंबर 2024, सोमवार से शुरू होने वाला है, जो कि 15 नवंबर 2024, शुक्रवार तक चलेगा। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने वाले सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति को जीवन में किए जाने वाले हर कार्य में सफलता मिलती है। आपको बता दें कि कार्तिक महीने की शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक का व्रत भीष्मपंचक व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिम महाभारत के मुख्य पात्र गंगापुत्र भीष्म की पूजा की जाती है।

भीष्म पंचक तिथि

अगर आप भीष्म पंचक में विशेष पूजा कर भीष्म पितामाह का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो वैदिक रिति रिवाजों से पूजा संपन्न करें। आपको किसी तरह की मदद की आवश्यकता है, तो आप हमारे विद्वान पंडितों से संपर्क कर सकते हैं। वैंदिक पंडित जी से बात करने के लिए यहां क्लिक करें…

भीष्म पंचक 2024तिथि और समय
भीष्म पंचक की शुरुआत11 नवंबर 2024, सोमवार
भीष्म पञ्चक व्रत की समाप्ति15 नवंबर 2024, शुक्रवार

भीष्म पंचक व्रत पूजा मंत्र

वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।

भीष्म पंचक के दौरान भीष्म पितामाह की आराधना करने के लिए आपको इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। इस मंत्र के उच्चारण से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

ऐसे हुई भीष्म पंचक की शुरुआत

महाभारत का ऐतिहासिक युद्ध 18 दिनों तक लड़ा गया था, जिसमें पांडवों की जीत हुई थी। सामने उनके ही सगे संबंधी कौरवों की सेना थी, जिसमें पांडवों और कौरवों के पितामाह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य व कुलगुरु कृपाचार्य शामिल थे। अंर्जुन के बाणों ने भीष्म पितामाह के शरीर को छलनी कर दिया, लेकिन उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान होने के कारण उन्होंने प्राण नहीं त्यागे। वह महाभारत का युद्ध खत्म होने तक जीवित थे। जब युद्ध खत्म हुआ, तो वासुदेव श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर भीष्म पितामाह के पास गए, और पांडवों को उपदेश देने का आग्रह किया। इस पर पितामह भीष्म ने पांच दिनों तक राज धर्म, वर्णधर्म, मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया। उनके उपदेश के बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि ‘पितामह, आपने एकादशी से पूर्णिमा तक जो धर्ममय उपदेश दिया है, उससे मुझे प्रसन्नता हुई है। इन्हीं पांच दिनों को मैं आपकी स्मृति में भीष्म पंचक व्रत के नाम से स्थापित करता हूं। जो भी व्यक्ति इस व्रत का पालन करेगा, वह जीवन में विविध सुखों को भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेगा।’ तभी से इस व्रत की किया जाता है।

कैसे करें भीष्म पंचक व्रत

भीष्म पंचक व्रत के दौरान पांच दिनों तक अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। हालांकि, फल आहार के रूप में आप कंदमूल, फल, दूध ले सकते हैं। यह व्रत 5 दिन तक चलता है, इसलिए उपासक को ‘’सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने । भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे’’ का जाप करते हुए भीष्म पितामाह का तर्पण करना चाहिए। इन पांच दिनों में भीष्मजी को अर्घ्य देना भी देना चाहिए। इसके लिए अर्घ्य के जल में थोड़ा सा कुमकुम,फूल, केवड़ा और पंचामृत को मिलाना लाभकारी होगा। साथ ही अगर आप इन पांच दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं, तो यह आपके जीवन में मंगलकारी साबित होगा। पांच दिनों तक नियमित स्नान के दौरान पानी में थोड़ा-सा गोझरण डाल लें, इससे आपका शरीर रोग मुक्त हो जाएगा। पितामाह भीष्म मां गंगा और शांतनु के पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता शांतनु की इच्छापुर्ति के लिए अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ़ संकल्प लिया था। इसी वजह से उनके पिता ने उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। और यही कारण है कि इन पांच दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन लाभकारी माना गया है।

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