जानिए चंपा षष्ठी (champa shashti) से जुड़ी संपूर्ण जानकारी..

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कब है चंपा षष्ठी

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चम्पा षष्ठीसोमवार, 18 दिसंबर 2023
षष्ठी तिथि प्रारम्भ17 दिसंबर, 2023 को 17:33
षष्ठी तिथि समाप्त18 दिसंबर, 2023 को 15:13

कैसे मनाई जाती चंपा षष्ठी

मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष के छठवें दिन पड़ने वाली चंपा षष्ठी को छठ पर्व भी कहा जाता है। इस दिन शिवलिंग को बैंगन या फिर बाजरे का भोग भी लगया जाता है। इस पर्व की सबसे ज्याद धूम महाराष्ट्र में रहती है। जहां भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप की आराधना की जाती है। इस दिन भगवान शिव के उपासक ब्रह्म मुहूर्त में उठते हैं, और नित्यक्रिया के बाद स्नान करते हैं। इसके बाद भगवान शिव का ध्यान लगया जाता है, और मंदिर में जातक शिवलिंग की पूजा करते हैं। शिवलिंग का दूध या फिर गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। इसके बाद फूल, अबीर, बेल पत्र चढ़ाकर देसी खांड का भोग लगाया जाता है।

इसके अलावा इस दिन भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। इसके लिए भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के उपासक सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं, और व्रत व पूजा का संकल्प लेते हैं। इसके बाद दक्षिण की तरफ मुख करके भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है। साथ ही घी, दही और जल से अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद भगवान कार्तिकेय को ताजे और सुगंधित पुष्प चढ़ाए जाते हैं। हालांकि, इस दिन भगवान कार्तिकेय को चंपा के फूल चढ़ाना अति लाभ दायक माना जाता है। इसके बाद रात को जमीन पर ही सोना चाहिए, इससे भगवान कार्तिकेय का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही उपासक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चंपा षष्ठी के दिन तेल का बिल्कुल भी सेवन न करें, और अगले दिन तक ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।

चंपा षष्ठी को लेकर प्रचलित कथाएं

चंपा षष्टी के दिन पूजा की शुरुआत कैसे हुई, इसे लेकर कई सारी पौराणिक कथाएं हैं। जिनका वर्णन अलग अलग जगहों पर मिलता है। इनमें दो महत्वपूर्ण कथाएं, हम उनके बारे में आपको बताते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि एक बार कार्तिकेय अपने माता पिता शंकर जी और पार्वती व छोटे भाई गणेश से किसी बात को लेकर रूष्ट हो गए। जिसके बाद वह कैलाश पर्वत छोड़ कर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन चलें गए, और वहीं पर निवास करने लगे। यहीं पर मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया था। साथ ही तिथि को उन्हें देवताओं की सेना का सेनापति बनाया गया था। इसी दिन से चंपा षष्ठी का यह त्योहार मनाया जाता है। चम्पा के फूल कार्तिकेय को बहुत पसंद है, इसी वजह से इस तिथि को चंपा षष्ठी के नाम से जाना जाता है।

इस दिन को लेकर एक दूसरी कथा जो प्रचलित है, उसके अनुसार प्राचीन काल में मणि और मल्ह नाम के दो दैत्य भाई थे। उनके अत्याचारों से मानव जाति को निजात दिलाने के लिए उनसे महादेव ने खंडोबा नामक स्थान पर 6 दिनों तक युद्ध लड़ा था, और उनका वध किया था। इसी स्थान भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। दोनों राक्षसों का वध करने के लिए भगवान शिव ने भैरव और पार्वती ने शक्ति का रूप धारण किया था। यही कारण है कि महाराष्ट्र में रुद्रावतार भैरव को मार्तंड-मल्लहारी कहा जाता है, साथ ही खंडोबा, खंडेराया आदि नामों से भी पहचाना जाता है। मणि और मल्ह नामक दैत्यों का वध करने के कारण ही इस दिन को चंपा षष्ठी कहा जाता है।

चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव और कार्तिकेय की पूजा करना बहुत ही शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस दिन सच्चे मन से शिव और कार्तिकेय की आराधना करता है, उसके सारे पाप कट जाते है, और सारी समस्याओं पर विराम लग जाता है। इसके अलावा उसके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है, और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। चंपा षष्ठी के दिन उपवास करने से मनुष्य के पिछले जन्मों के सारे पाप धुल जाते हैं। आपको बता दें कि भगवान कार्तिकेय मंगल ग्रह के स्वामी है। अपनी राशि  में मंगल को मजबूत करने के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करें। साथ ही आप मंगल के प्रभाव को कम करना चाहते हैं, तो हमारे वैदिक पंडितों से पूजा भी करवा सकते हैं। पूजा कराने के लिए यहां क्लिक करें…

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