चेटीचंड 2024 (Chetichand) : सिन्धी समुदाय का नया साल


भारत विविधताओं का देश है। यहां विभिन्न प्रकार के त्योहार-उत्सव मनाए जाते हैं। हर पर्व का एक खास अवसर होता है। कोई पर्व विशेष आयोजन पर होता है तो कोई ऋतु बदलने के मौके पर, कोई बारिश के आगमन पर होता है तो कोई चंद्रमा की कलाएं पूर्ण होने पर। कुछ पवित्र भावनाओं से जुड़े होते हैं तो कुछ उत्सव संतों के जन्मदिन से जुड़े होते हैं। नए साल के अवसर पर भी पर्व का आयोजन होता है। कुल मिलाकर विभिन्न धार्मिक उत्सव विभिन्न अवसर पर आयोजित किए जाते हैं। इसी तरह का एक पर्व है चेटीचांद । यह सिंधी समुदाय से जुड़ा पर्व है।

चेटीचांद का पर्व विशेष तौर पर सिंधी समुदाय के लोग मनाते हैं। यह हिंदू नव वर्ष के चैत्र (चेत) के प्रथम दिन मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा के नाम से पहचाना जाता है। जल के देवता वरुण देव के अवतार झूलेलाल पूजे जाते हैं। उनके जन्मदिन पर चेटीचांद मनाया जाता है।


चेटीचांद का महत्व

चेटीचांद सिंधी नववर्ष भगवान झूलेलाल जयंती के तौर पर मनाया जाता है। उन्हें उदरोलाल भी कहा जाता है। कथाओं के अनुसार दसवीं सदी में मिरकशाह नामक एक क्रूर राजा था। उसका बहुत बड़ा साम्राज्य था। जनता उसके प्रकोप से त्रस्त थी। एक दिन पूरी प्रजा ने 40 दिन का उपवास रखा और सभी सिंधु के किनारे देवताओं से प्रार्थना की। तब जाकर एक भविष्यवाणी हुई।

इस भविष्यवाणी के मुताबिक देवकी और रतनचंद लोहानो के एक चमत्कारी बच्चा होगा, जो सभी को राजा के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएगा। इस बच्चे के झूलों का भगवान यानी झूलेलाल कहा गया। अत्याचारी राजा ने झूलेलाल को सबक सिखाने की हर संभव कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा। इसके बाद झूलेलाल ने राजा मिरकशाह से मुलाकात की और उसे अपने दिव्य ज्ञान से बदलकर रख दिया। इसके बाद सिंध राज्य एक बार फिर से शांतिपूर्ण हो गया।

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इस दिन को नई शुरुआत, नए प्रयासों के लिए शुभ व अनुकूल माना जाता है। इस दिन सिंधी समुदाय भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना के बाद सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देते हैं। इनमें वे लोकनृत्य, गायन, ड्रामा, कविता जैसी कई रंगारंग कार्यक्रमों में भाग लेते हैं।

सिंधी समुदाय हिंदू वर्ष के पहले महीने को चैत्र या चेत के रूप में जानते हैं। इस पंचांग में हर माह की शुरुआत नए चंद्रमा के साथ होती है। लोग इस दिन नदी या झील के किनारे जाते हैं और रीति रिवाज पूरे करते हैं। अगर कहीं नदी न हो तो यह कुएं पर भी किया जा सकता है।


चेटीचांद 2024 की तिथि

हिंदू पंचांग तय करता है कि चेटीचांद उत्सव कब होगा। इस कैलेंडर के दूसरे दिन सम्मान समारोह भी आयोजित किया जाता है। आम तौर पर माना जाता है कि ग्रेगोरियन कैलेंडर में मार्च के अंत या अप्रैल में यह उत्सव आता है। यह गुड़ी पड़वा और उगाडी के दिन आता है।

चेटीचांद – मंगलवार, 9 अप्रैल 2024
चेटीचांद मुहूर्त – सायं 06:32 बजे से सायं 07:08 बजे तक
अवधि – 00 घंटे 36 मिनट
प्रतिपदा तिथि शुरुआत – 08 अप्रैल, 2024 को रात्रि 11:50 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्ति – 09 अप्रैल, 2024 को रात्रि 08:30 बजे


चेटी चांद की संस्कृति और परंपरा

यह दिन सिंधी समुदाय के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है। यह दिन जल देवता वरुण देव के अवतार भगवान झूलेलाल की प्रार्थना की जाती है। भगवान झूलेलाल ने क्रूर राजा से सिंधी समुदाय व हिंदू धर्म को बचाया था। सिंधी समुदाय चालीस दिन तक प्रार्थना करता है, जिसे ‘चालीहो’ के नाम से पहचाना जाता है। वे पूजा करते हैं, उपवास रखते हैं और फल आदि का सेवन करते हैं।

इस दिन कई सिंधी समुदाय के लोग बहराणा साहिब को लेकर नदी या झील तक जाते हैं। इसमें तेल का दीपक, चीनी, इलायची, अंगूर और ओखा शामिल होता है। वे पल्लव गायन करते हैं। उनके साथ झूलेलाल की मूर्ति भी होती है। वे बहराणा का विसर्जन करते हैं, फिर प्रसाद बांटते हैं। लोग दान पुण्य भी करते हैं। गरीबों को खाने के साथ कपड़े भी बांटे जाते हैं। सगे-संबंधियों को भोजन करवाया जाता है। इसके बाद सभी एक दूसरे को बधाई देते हैं और कहते हैं चेटीचांद ज्यों लख लख वाधायूं।


चेटीचांद के स्वादिष्ट व्यंजन

भारत में हर मौके के लिए अलग तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। लोग मिलकर स्वादिष्ट व्यंजन खाते हैं और एक दूसरे को बधाई देते हैं। चेटीचांद के उत्सव के लिए भी खास व्यंजन बनाए जाते हैं।

मिठाई – तेरी, सीरो मालपुओ, रबड़ी मालपुआ, गुलाब जामुन
पेय – खिरनी, ठंडाई, फालूदा
नाश्ता – मिठो लोलो, स्यून पटटा
खाना – साई भाजी, सिंधी कढ़ी, दाल पकवान, सिंधी पिलाफ, सिंधी कोकी


गतिविधियां और आयोजन

चालीहो साहेब

जल देवता वरुण देव की पूजा अर्चना की प्रमुख रीति रिवाज चालीस दिन की पूजा चालीहो होती है। चालीहो के बाद झूलेलाल भगवान के अनुयायी इस दिन उनका आभार प्रकट करते हैं।

बहराणा साहेब
चेटीचांद उत्सव पर एक और महत्वपूर्ण रिवाज होता ैहै, जिसे बहराणा साहेब कहते हैं। ज्योत, चीनी, पोहा, फल और अखा बहराणा साहेब में होते हैं। एक तांबे के कलश को कपड़े से ढका जाता है, फूल, पत्तियां लगाए जाते हैं। साथ में भगवान झूलेलाल की मूर्ति रखी जाती है। बहराणा साहेब को ले जाया जाता है। इस दौरान रास्ते में सिंधी जन लोकनृत्य छेज प्रस्तुत करते हैं। नदी या झील तक जाते हैं, वहां जल के देवता को आखो समर्पित करते हैं। ये परम्पराएं प्राचीन काल से चली आ रही हैं।

कुछ शहरों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। अपनी समृद्ध संस्कृति की झलक प्रस्तुत करते हैं। कई सिंधी संस्थाएं व संगठन बड़े आयोजन भी करते हैं। व्यापारी इस दिन नया खाता शुरू करते हैं। सिंधी समुदाय के लोग पंचायती भवन झूलेलाल मंदिर में एकत्रित होते हैं। भगवान झूलेलाल की पूजा करते हैं। चेटीचांद पर्व झूलेलाल जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। यह उल्लास, खुशी और उत्सव का पर्व है।



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