जन्माष्टमी 2023 व्रत विधि और पूजा मुहूर्त
कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है
इस साल कृष्ण जन्माष्टमी गुरुवार, 7 सितंबर 2023 के दिन मनाई जाएगी। कुछ पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आज से लगभग 5000 साल पहले माना गया है। कुछ तथ्य साल 2023 में आने वाली जन्माष्टमी को भगवान कृष्ण का 5250वां जन्मोत्सव भी बता रहे हैं। हालांकि इसमें कई तरह के मतभेद भी हो सकते हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तारीख – गुरुवार, 7 सितंबर 2023
कृष्ण के जन्म की कथा (Story of life of Krishna)
द्वापर युग में जब अधर्म का जोर बहुत बढ़ गया था तथा धर्म की हानि हो रही थी, तब भगवान विष्णु ने मथुरा में कंस के कारागार में माता देवकी के गर्भ से कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। योगमाया से प्रेरित तथा उनके आदेशानुसार उनके पिता वसुदेव नवजात कृष्ण को रात्रि के अंधकार में ही घनघोर बारिश के बीच उफनती यमुना नदी को पार कर गोकुल स्थित अपने मित्र तथा गांव के प्रमुख नंद बाबा के घर पर छोड़ आए तथा उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए। सुबह जब कंस को कन्या के जन्म का पता चला तो वह उसका वध करने कारागार में जा पहुंचा। उसने कन्या को हाथ में लेकर दीवार की ओर पटका ही था कि वह उसके हाथ से छूट कर आकाश में चली गई तथा दिव्य स्वरूप धारण कर कंस को चेतावनी दी कि तुझे मारने वाला पैदा हो चुका है। गोकुल में भी कृष्ण के लिए समय इतना अच्छा नहीं रहा। किसी तरह अपने गुप्तचरों के द्वारा कंस को यह ज्ञात हो गया था कि नन्हा कृष्ण वृंदावन में नंद बाबा के घर में पल रहा है। उसने कृष्ण के वध के लिए अपने कई शक्तिशाली राक्षसों को भेजा परन्तु सभी को नन्हे कृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम की सहायता से परास्त कर मार गिराया। किशोरावस्था में उन्होंने कंस का वध कर अपने माता-पिता को कारागार से मुक्त किया और राज्य का भार अपने नाना उग्रसेन को पुन: सौंप दिया।
कंस के वध के बाद कृष्ण ने उज्जैन में गुरुकुल जाकर विधिवत शिक्षा ली और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना के लिए निकल पड़े। अधर्म के विरुद्ध धर्म के युद्ध में उन्होंने पांडवों का साथ दिया। जब युद्ध आरंभ होने के पूर्व ही अर्जुन ने मोह से ग्रस्त होकर धनुष को रख दिया तथा युद्ध लड़ने से मना कर दिया, तब उन्होंने अर्जुन को श्रीमद्भागवत गीता का उपदेश देकर उसे युद्ध के लिए प्रेरित किया। इनके अलावा भी उन्होंने अपने जीवन काल में शिशुपाल तथा जरासंध जैसे अनेकों शक्तिशाली दुष्ट राजाओं का नाश किया और शांति तथा आमजन को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।
ऐसे मनाया जाता है जन्माष्टमी का पर्व (How does Krishna Janmashtami celebrated)
पूरे देश में कृष्णा जन्माष्टमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान कृष्ण के भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, सुबह स्नान आदि कर साफ, स्वच्छ वस्त्र पहन कर कृष्ण मंदिरों में जाते हैं। वहां पर भक्ति भाव से कृष्ण की पूजा की जाती है। दिन में विभिन्न प्रकार के धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सायंकाल सूर्यास्त के समय मन्दिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार रात्रि बारह बजे भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, अत: उस समय कृष्ण जन्म का प्रसंग दोहराया कर रात्रि बारह बजे मन्दिरों के पट खोले जाते हैं और कृष्ण प्रतिमा (तथा चित्र) की पंचोपचार से पूजा की जाती है। उन्हें धनिए की पंजीरी, केले, सेब, दही आदि का भोग चढ़ाया जाता है। भगवान कृष्ण की धूप दीपक आदि से आरती कर अंत में प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दिन देश के सभी मन्दिरों में रात्रि को प्रसाद लेने हेतु लंबी कतारें लगती हैं और भक्तजन प्रसाद लेने के लिए धैर्यपूर्वक इंतजार करते हैं। बच्चों को कृष्ण तथा राधा रानी के रूप में सजाया जाता है। कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों को दर्शाया जाता है। उनकी लीलाओं का स्मरण कर हरि नाम कीर्तन किया जाता है। मंदिरों को सजाया और संवारा जाता है, लगभग सभी मंदिरों में वैष्णव भजन, संकीर्तन तथा अन्य धार्मिक कार्य किए जाते हैं। घरों में गीता पाठ किया जाता है, श्रीमद्भागवत तथा भागवत पुराण का पाठ किया जाता है। इनके अलावा बहुत से लोग “हरे राम, हरे कृष्णा” तथा “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:” जैसे बहुत से मंत्रों का जप भी करते हैं।
दक्षिण भारत में भी जन्माष्टमी को गोकुल अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। लोग अपने फर्श को कोलम (चावल के घोल से तैयार सजावटी पैटर्न) से सजाते हैं। गीत गोविंदम तथा अन्य भक्ति गीत गाए जाते हैं। कृष्ण के आगमन को दर्शाने के लिए घर की दहलीज से पूजा कक्ष तक कृष्ण के पैरों के निशान खींचते हैं। कृष्ण को प्रसाद में फल, पान तथा मक्खन अर्पित किया जाता है। बहुत से भक्त पूरे दिन व्रत रखते हैं तथा रात्रि को बारह बजे कृष्ण जन्मोत्सव तथा उनकी पूजा के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं।
दुनिया में कृष्णभक्तों का सबसे बड़ा धार्मिक संगठन इस्कॉन इस दिन पूरे विश्व में बनाए गए इस्कॉन मंदिरों में भव्य कार्यक्रम आयोजित करता है। सभी मंदिरों में हरे राम, हरे कृष्ण मंत्र की कीर्तन तथा जप किया जाता है। कृष्ण लीलाओं का वर्णन तथा दृश्यांकन किया जाता है।
ऐसे करें भगवान कृष्ण की पूजा
जन्माष्टमी के दिन सुबह भगवान कृष्ण या बाल गोपाल की मूर्ति को जल, दूध, दही, शहद और पंचामृत से स्नान करवाएं। नए और साफ वस्त्र भगवान कृष्ण को पहनाएं। हो सकें तो पीले रंग के नए वस्त्र भगवान कृष्ण को समर्पित करें। भगवान कृष्ण के साथ राधा की मूर्ति हो तो उनका भी तरह-तरह से श्रृंगार करें। भगवान कृष्ण को सुबह मिठाई का भोग लगाएं। भगवान कृष्ण के पवित्र मंत्रों का पाठ करें। हो सकें तो गोपाल सहस्रनाम, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना भी उत्तम रहेगा। दोपहर बारह बजे भगवान की आरती करें और उन्हें घर में बने नैवेद्य का भोग लगाएं। शाम में भी भगवान की आरती करें। रात नौ बजे बाद भगवान कृष्ण के सामने घी का अखंड दीपक लगाएं। कोशिश करें कि यह दीपक सुबह तक चलें। इस बीच भगवान कृष्ण का फिर से अभिषेक करें। रात बारह बजे भगवान की आरती करें और उनके किसी भी मंत्र का 108 बार जाप करें। इसके बाद अपना व्रत खोलें।
कृष्ण पूजा से ग्रह शांति
वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्मकुंडली में पितृदोष की स्थिति होने पर श्रीकृष्ण – मुखामृत गीता का पाठ करना चाहिए। इसी के साथ प्रेतशांति व पितृदोष निवारण के लिए श्रीकृष्ण चरित्र की कथा, श्रीमद्भागवत महापुराण का पाठ करना चाहिए। ग्रह शांति व सभी ग्रहों के दोष से निवारण के लिए ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की 1008 माला फेरें।
वैदिक ज्योतिष में इस मंत्र का उपयोग लगभग हर ग्रह दोष के निवारण के लिए किया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण के अन्य मंत्र
ओम् गोविंदाय नम:।। ओम क्लीं कृष्णाय नम:।।
दही हांडी (Dahi Handi)
कहा जाता है कि नन्हे कृष्ण बड़े ही शरारती थे। यद्यपि वे गांव के प्रमुख के पुत्र थे परन्तु उन्हें अपने बाल ग्वालमित्रों के साथ गोपियों के घर जाकर हांडी तोड़कर मक्खन चुराकर खाना अच्छा लगता था। गोपियां उनकी माता से शिकायतें भी करती थीं और उन्हें दंड भी मिलता था परन्तु नटखट कृष्ण अपनी शरारतें नहीं छोड़ते थे। उन्हीं की इस लीला का स्मरण करते हुए देश के विभिन्न भागों में दही हांडी का पर्व मनाया जाता है। जन्माष्टमी पर आयोजित किए जाने वाले सभी कार्यक्रमों में सबसे प्रमुख कार्यक्रम दही हांडी है। इस आयोजन में छोटे-छोटे समूहों में बच्चे, युवा तथा वयस्कों को ऊंचाई पर बंधी हुई एक हांडी (जिसमें मक्खन भरा होता है) तक पहुंच कर उसे तोड़ना होता है। सभी समूह एक पिरामिड बनाते हुए ऊपर चढ़ने का प्रयास करते हैं तथा सबसे पहले ऊपर पहुंच कर हांडी तोड़ देते हैं, उन्हें पुरस्कार के रूप में नकद राशि तथा अन्य उपहार दिए जाते हैं। खेल में भाग लेने वाले प्रतिभागियों को कृष्ण के ही नाम पर गोविंदा कहा जाता है। दही हांडी के इस खेल में लोगों के लिए पुरस्कार से अधिक टीम भावना और जीत का जज्बा होता है जो देखते ही बनता है।
इस खेल की सबसे ज्यादा धूम महाराष्ट्र (यहां पर जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है) तथा वृंदावन और मथुरा में देखी जाती है। यहां पर इसके लिए बाकायदा सरकार भी प्रोत्साहन देती है। मुंबई में जन्माष्टमी पर दही हांडी का कार्यक्रम बहुत जोर-शोर से मनाया जाता है।
उत्तरी भारत के साथ-साथ देश के पूर्वोत्तर राज्यों यथा मणिपुर, असम आदि में नर्तक रासलीला प्रसंग को मंचन करता है। बालक तथा युवा राधा एवं कृष्ण का वेश धरकर विभिन्न कृष्ण लीलाओं का मंचन करते हैं।
जम्मू राज्य, गुजरात तथा देश के कई अन्य हिस्सों में जन्माष्टमी के दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है।
पश्चिम बंगाल में जन्माष्टमी को श्री जयंती अथवा कृष्ण जयंती भी कहा जाता है। उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में गंगाजल लाकर कृष्ण प्रतिमाओं को स्नान करवाया जाता है। उन प्रतिमाओं की पंचगव्य तथा पंचोपचार से पूजा की जाती है। भागवत पुराण के दसवें अध्याय (जिसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है) का पाठ किया जाता है। जन्माष्टमी के अगले दिन नन्दोत्सव मना जाता है जिसमें कृष्ण के नंद बाबा तथा यशोदा मैया की महिमा को स्मरण किया जाता है।
देश के बाहर कृष्ण जन्माष्टमी और देश के प्रमुख कृष्ण मंदिर (Krishna Janmashtami Outside India)
भारत से बाहर रह रहे हिंदू धर्मावलंबी तथा इस्कॉन के अनुयायी इस पर्व को बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं। नेपाल और भूटान में भारत के समान ही विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जबकि अमरीका, कनाड़ा, इंग्लैंड व अन्य बहुत से देशों में कृष्ण भक्त एकत्रित होकर कृष्ण नाम जपते हुए उनकी महिमा का गुणगान करते हैं। भारत सहित विश्व भर में बहुत से मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित करते हुए बनाए गए हैं। इन मंदिरों में कुछ प्रमुख मंदिर निम्न प्रकार हैं।