दही हांडी उत्सव और श्रीकृष्ण के जन्म की कथा
भगवान कृष्ण का हिंदू धर्म में एक अहम स्थान है। कृष्ण त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से सृष्टि के रचनाकार श्री विष्णु के अवतार हैं। उन्हें भगवान योगेश्वर भी कहा जाता है। महाभारत महाकाव्य भगवान कृष्ण की यशगाथा को बताता है। उनके उपदेश ने कई लोगों के जीवन को आत्मविश्वास से भर दिया, उन्हें जीवन संदेश दिया। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को शिक्षा देने से पहले उन्होंने कई लीलाएं भी की थी। बचपन में वे बड़े शरारती थे। वे अपने सखाओं के साथ बड़ी शरारत करते, दही और मक्खन से भरी मटकी या हांडी तोड़ देते थे। कितनी अनोखी बात है, दुनिया को गीता का सार सिखाने वाले भगवान बचपन में दूध और दही के प्रेमी थे। चलिए भगवान कृष्ण के जन्म और दही हांडी उत्सव के बारे में जानते हैं।
दही हांडी उत्सव और श्रीकृष्ण के जन्म की कथा
भगवान कृष्ण के पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी था। देवकी मथुरा के क्रूर और अहंकारी राजा कंस की बहन थी। जब देवकी और वासुदेव का विवाह हो रहा था, उस समय आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान कंस का वध करेगी। वही मथुरा के लोगों को कंस का आतंक से मुक्ति दिलाएगा। यह सुनकर कंस ने वासुदेव और देवकी को कैद कर लिया।
इसके बाद कंस ने देवकी व वासुदेव की छह संतानों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं, सातवीं संतान बलराम या बलभद्र को योग माया देवी की शक्तियों की मदद से वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित किया। जब कृष्ण का जन्म हुआ तो आधी रात को वासुदेव चुपचाप किसी तरीके से जेल से उसे लेकर गोकुल में रहने वाले नंद और यशोदा के यहां छोड़ आए, दोनों ने कृष्ण को पाला। दोनों उनके पालक माता पिता बने।
लोग कृष्ण के जन्म के अवसर पर कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाते हैं। कुछ जगहों पर इसके अगले दिन दही हांडी उत्सव आयोजित किया जाता है। कई स्थानों पर दोनों ही आयोजन एक ही दिन होते हैं।
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कृष्ण जन्माष्टमी और दही हांडी
जहां तक बात दही हांडी उत्सव की है, देश के कई भागों में यह उत्सव मनाया जाता है। ङ्क्षहदू धर्म में लोग इसे गोकुलाष्टमी दही हांडी या फिर कृष्ण दही हांडी के नाम से भी पहचानते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह उत्सव अगस्त या सितंबर महीने में मनाया जाता है। महाराष्ट्र में दही हांडी उत्सव बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। मुंबई में कई जगहों पर दही हांडी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं।
दरअसल, बचपन में भगवान कृष्ण बहुत ही नटखट थे। वे दही मक्खन बहुत पसंद करते थे। गोकुल और वृंदावन में गोपियों के घरों से अपने सखाओं के साथ दही और मक्खन चुरा लेते थे। अपनी बाल लीलाओं को दिखाते और मक्खन का आनंद लेते थे। गोपियां मक्खन को बचाने के लिए ऊंचाई पर लटकाती थी, लेकिन कृष्ण अपने सखाओं के साथ पिरामिड बनाकर चढ़ते, मटकी फोड़ते और सभी को माखन खिलाते। कुछ इसी रूप में यह दही हांडी उत्सव आज भी मनाया जाता है। इसके जरिए भगवान कृष्ण को याद किया जाता है।
जन्माष्टमी, दही हांडी 2022, मुहूर्त
महीना– पूर्णिमा- भाद्रपद (अमृता-श्रवण)
दिन– शुक्रवार
दिनांक– 19 अगस्त 2022
अष्टमी तिथि शुरू– 18 अगस्त, 2022 रात 09:20 PM
अष्टमी तिथि समाप्ति- 19 अगस्त, 2022 दोपहर 10:59 PM
दही हांडी में क्या होता है
दही हांडी में अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग चीजें रखी जाती है। यह स्थान के साथ बदल जाती हैं। आम तौर पर दूध से बनी चीजों का इस्तेमाल ही किया जाता है, क्योंकि वे भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय थीं। इसमें दही, दूध, मक्खन, घी आदि रखा जाता है। कुछ जगहों पर शक्कर, गुड़, शहद आदि भी दही के साथ रखते हैं। कुछ जगहों पर पोहा भी मिलाया जाता है। अब आधुनिकता के दौर में दही हांडी में रखे जाने वाले सामान में कुछ बदलाव आया है। इसमें चॉकलेट, फल और क्रीम भी रखी जाने लगी है।
अब दही की हांडी को भी खूबसूरत बनाने की होड़ लगी रहती है। लोग उसे सुंदर तरीके से सजाते हैं। रंगों और फूलों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें ‘गोविंदा’ का दल आयोजित की गई प्रतियोगिताओं में भाग लेता है। प्रतियोगिता का इनाम दही हांडी के साथ ही लटका दिया जाता है। हांडी के साथ चांदी के सिक्कों जैसी मूल्यवान वस्तु लटका दी जाती है, जो प्रतियोगिता के विजेताओं को मिलती है।
दही हांडी उत्सव का ज्योतिषीय महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव को हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। दही हांडी उत्सव भगवान कृष्ण की आराधना का एक माध्यम है। भक्त इस दिन भजनों से भगवान कृष्ण का गुणगान करते हैं। उनकी लीलाओं की महिमा को बताते हैं।
भगवान कृष्ण को श्री विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है। इस दिन उनकी पूजा-अर्चना जीवन में सुख शांति व समृद्धि लेकर आती है। वैसे तो देश में दही हांडी उत्सव से जुड़ी कई परम्पराएं व रीति रिवाज हैं। इनमें भगवान कृष्ण के प्रति भक्तों का प्रेम व समर्पण झलकता है। रास लीला और दही हांडी उत्सव किसी पूजा से कम नहीं है। इस तरह भगवान का आशीर्वाद हासिल करने में जात-पात, ऊंच-नीचे जैसा कोई बंधन नहीं है।
प्रार्थना है कि दही हांडी उत्सव खुशी और जीवन में उत्साह लेकर आए। जय श्री कृष्ण।