नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में जाते हैं भक्त श्रद्धालु
नवरात्रि का पर्व तथा रीति-रिवाज (Navratri Celebration And Rituals In India)
नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में जाते हैं श्रद्धालु (Temples To Be Visited During Navratri)
वैष्णो देवी मंदिर (Vaishno Devi Temple)
वैष्णो देवी मंदिर विश्व भर के हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा सबसे अधिक देखी जाने वाली जगह है। जम्मू और कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्र में कटरा में त्रिकुटा पर्वत में स्थित इस मंदिर में मां वैष्णो देवी अपनी तीनों स्वरूप मां सरस्वती, मां महाकाली और मां महालक्ष्मी के रूप में विराजमान है। यदि संभव हो तो आपको नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में जाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple)
असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर को देश के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काट दिया था तो यहां पर देवी सती का योनि भाग गिरा था। इस मंदिर की तांत्रिकों में विशेष मान्यता है। यहां देवी के रजस्वला होने का पर्व भी बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।
दक्षिणेश्वर मंदिर (Dakshineshwar Temple)
कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर दुनिया भर के शाक्त श्रद्धालुओं के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय स्थान है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1855 में, रानी रासमणी ने करवाया था। दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता शहर के पास हुगली नदी के तट पर स्थित है। यहां मां भवतारिणी की एक प्रतिमा स्थापित है, जो देवी काली का एक रूप है। यदि आप नवरात्रि उत्सव के दौरान मंदिर जाते हैं तो आपको देवी का आशीर्वाद मिलता है।
कालीघाट मंदिर (Kalighat Temple)
नवरात्रि के त्योहार के दौरान बहुत से भक्त महा काली मंदिर भी जाते हैं। यह मंदिर कोलकाता के कालीघाट जिले के पास स्थित है। भक्तों के अनुसार इस स्थान पर देवी सती के दाहिने पैर का अंगूठा मिला था। यहां देवी अपने सबसे उग्र तथा भयावह स्वरूप में विराजित हैं।
कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर (Kolhapur Mahalakshmi Temple)
मुंबई की इष्टदेवी मुंबा देवी को समर्पित कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर पूरे विश्व में अपने आप में अनोखा है। यह मंदिर चालुक्यों के शासनकाल में बनाया गया था। इस मंदिर का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि यहां पर वर्ष में दो बार सूर्य का प्रकाश प्रतिमा के पैरों तथा छाती तक पहुंचता है। 31 जनवरी तथा 9 नवंबर को सूर्य का प्रकाश देवी के चरणों को छूता है तथा एक फरवरी व 10 नवंबर को सूर्य की रोशनी उनके वक्षस्थल पर पड़ती है।
मीनाक्षी मंदिर (Meenakshi Temple)
तमिलनाडु के मदुरै में वैगई धारा के तट पर आयोजित मीनाक्षी अम्मन मंदिर में मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित है। यहां, देवी की मूर्ति के दाहिने हाथ में एक शुक पक्षी (तोता) धारण किए हुए हैं तथा उनके पास बहुमूल्य रत्न की नोज पिन है जो सहज ही भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
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छोटानिकारा मंदिर (Chottanikkara Temple)
मां महालक्ष्मी को समर्पित यह मंदिर केरल में समुद्र के किनारे के स्थित कोच्चि के एक उपनगर में बनाया गया है। यहां देवी के तीन स्वरूपों की पूजा की जाती है। दिन की शुरुआत में महासरस्वती, शाम को महालक्ष्मी और देर शाम को देवी महाकाली के रूप में उनकी आराधना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि मानसिक बीमारी से ग्रसित लोग यहां देवी के दर्शनों से ठीक हो जाते हैं।
अंबाजी मंदिर मंदिर (Ambaji Temple Temple)
गुजरात के बनासकांठा जिले में स्थित अंबाजी मंदिर भी देश के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक है। लोकमान्यताओं के अनुसार देवी सती के शरीर का मध्यभाग इसी स्थान पर गिरा था, यहां की बहुत अधिक मान्यता है। यहां पर देवी सती के यंत्र की पूजा की जाती है।
नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple)
नवरात्रि के त्योहार के दौरान नैना देवी मंदिर में भी बहुत से श्रद्धालु दर्शनों के लिए जाते हैं। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश में स्थित है, और इसे महेशपीठ कहा जाता है। माना जाता है कि यहां पर देवी ने राक्षस महिषासुर का वध किया था।
ज्वाला देवी मंदिर (Jwala Devi Temple)
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र के पास स्थित है। देश में स्थित प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वाला देवी में शाश्वत जलती अग्नि ही उनका प्रतिनिधित्व करती है। यहां पर देवी सती की जिव्हा गिरी थी।
सुंदरी मंदिर (Sundari Temple)
कहा जाता है कि माता सती का ‘दाहिना पैर’ राजस्थान के उदयपुर के दक्षिण-पश्चिमी हिस्सों में माताबारी में गिरा था। यह ‘पीठस्थान’ (भ्रमण का केंद्र बिंदु) आमतौर पर कूर्म पीठ माना जाता है क्योंकि मंदिर की स्थिति “कूर्म” या कछुए को इंगित करती है। मंदिर में कांस्य से बनी मां काली की प्रतिमा स्थापित की गई है।
मंगला गौरी मंदिर (Mangala Gauri Temple)
इस मंदिर को शाक्त सम्प्रदाय के प्रमुख 18 महाशक्तिपीठों में एक माना जाता है। मंगलगौरी पर्वत पर स्थित होने के कारण इस स्थान को मंगला गौरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर पंद्रहवीं शताब्दी में बनाया गया था। स्थानीय क्षेत्र में इस मंदिर की काफी प्रतिष्ठा है। यहां पर महिलाएं अपने परिवार की शांति तथा सौभाग्यपूर्ण दाम्पत्य जीवन जीने का आशीर्वाद लेने के लिए आती हैं। नवरात्रि के दौरान आने वाले मंगलवार को इस मंदिर में दर्शनार्थियों की भारी भीड़ लगती है। यहां पर देवी की प्रतिमा या फोटो को पहले दूध, दही और पानी से स्नान करवाया जाता है, इसके बाद उन्हें लाल वस्त्र धारण करवाए जाते हैं।पूजा के दौरान उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग चढ़ाए जाते हैं।
महाकाली देवी मंदिर (Maha Kali Devi Temple)
उज्जैन में महाकाल के साथ ही महाकाली भी विराजमान है। यहां के महाकाली मंदिर में हरसिद्धि माता की प्रतिमा स्थापित की गई है। यह मंदिर भी एक प्रमुख शक्तिपीठ है। इस मंदिर का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने अपनी ईष्टदेवी मां काली के लिए करवाया था। किंवदंतियां हैं कि राजा विक्रमादित्य ने कई बार अपने शीश को काट कर मां काली के चरणों में अर्पित कर दिया परन्तु काली की ही कृपा से वह पुन: जीवित हो गए। यहां पर भगवती महाकाली को चामुण्डा भी कहा जाता है। अपने इसी स्वरूप में उन्होंने अंधकासुर का वध किया था।
चामुंडेश्वरी मंदिर (Chamundeshwari Temple)
श्री चामुंडेश्वरी मंदिर कर्नाटक में मैसूर से 13 किमी दूर स्थित है। चामुण्डा अथवा दुर्गा मां आद्यशक्ति का ही रौद्र स्वरूप है। अपने इस स्वरूप को धारण कर भगवती ने भैंसे के सिर वाले राक्षस महिषासुर तथा उसके सेनापतियों चंड, मुंड तथा सम्पूर्ण सेना का संहार किया था। वह मैसूर के महाराजा की कुलदेवी है। उन्हीं की कृपा से मैसूर राज्य में राजवंश का शासन रहा।