शीतला सप्तमी, क्यों मानते हैं? जानें 2022 की तिथि और महत्वपूर्ण बातें
शीतल माता को स्वस्थ तथा स्वच्छता की देवी कहा जाता है। इनका यह अवतार प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक माना जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार यह मा दुर्गा और मा पार्वती का ही एक स्वरूप है । इनकी पूजा आराधना शरीरिक रोगों से मुक्ति प्राप्त करने के लिये की जाती है । शीतला सप्तमी भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को आता है एक हाथ में जल का कलश और दूसरे हाथ में झाडू, नीम के पत्ते शीतला माता धारण करती हैं और गधे की सवारी करती हैं।
2022 में शीतला सप्तमी कब है?
शीतला सप्तमी 2022 | गुरुवार, 24 मार्च 2022 |
सप्तमी तिथि शुरू | 02:10 AM, 24 मार्च 2022 |
सप्तमी तिथि खत्म | 12:10 AM, 25 मार्च 2022 |
शीतला सप्तमी का महत्व
शीतला सप्तमी हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। यह दिन शीतला माता या देवी शीतला को समर्पित है। भक्त उनकी प्रार्थना करते हैं और अपने बच्चों और परिवार की भलाई के लिए पूजते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी शीतला की पूजा करने से चेचक जैसी बीमारियों से बचाव होता है।
यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों में मनाया जाता है। दक्षिणी भारत में, देवता को देवी मरिअम्मन या देवी पोलेरम्मा के रूप में जाना जाता है। शीतला सप्तमी के त्योहार को आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के क्षेत्रों में पोलाला अमावस्या के रूप में भी जाना जाता है।
स्कंद पुराण के अनुसार, देवी शीतला देवी दुर्गा और मां पार्वती का अवतार हैं। देवी, प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक है और इसलिए भक्त देवी शीतला की पूजा करते हैं और चेचक जैसी बीमारियों से सुरक्षित रहने के लिए प्रार्थना करते हैं। ‘शीतला’ का शाब्दिक अर्थ है ‘शीतलता’ या ‘ठंडा’।
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शीतला सप्तमी की पूजा कैसे करें
इस दिन भक्त सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करते हैं। वे शीतला माता मंदिर में भोग दही, चावल, हलवा, पूरी, एक खीर या रबड़ी आदि के साथ हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल, सिंदूर, मेहंदी, काजल, लाल चुनरी, कलावा, केला आदि कलश पर चढ़ाकर पूजा करते हैं। बहुत से लोग अपने घर पर भी पूजा करते हैं और एक सुखी, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन चाहते हैं।
शीतला माता व्रत कथा को पढ़ना और सुनना पूजा का एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। देश के कुछ हिस्सों में, लोग देवी को प्रसन्न करने के लिए अपना सिर मुंडवा भी लेते हैं। आरती गाकर पूजा संपन्न हुई। एक बार पूजा हो जाने के बाद, लोग अपने, अपने परिवार के सदस्यों और अपने घर को शुद्ध करने के लिए कलश से जल छिड़कते हैं।
व्रत के दिन सुबह शीतला माता की पूजा के दौरान स्नान के बाद बासी भोजन किया जाता है। इसके बाद परिवार के सभी सदस्यों को प्रसाद के रूप में भोजन कराया जाता है। ऐसा माना जाता है कि झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है और कुबेर का वास होता है।
शीतला सप्तमी कथा
एक गांव में ब्राह्मण दंपति रहते थे। दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए थे। इतने में शीतला सप्तमी (जहां अष्टमी को पर्व मनाया जाता है वे इसे अष्टमी पढ़ें) का पर्व आया। घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया। दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा भोजन लेंगी तो बीमार होंगी, बेटे भी अभी छोटे हैं। इस विचार के कारण दोनों बहुओं ने तो पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली। सास-बहू शीतला की पूजा करके आई, शीतला माता की कथा सुनी।
बाद में सास तो शीतला माता के भजन करने के लिए बैठ गई। दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आई। दाने के बरतन से गरम-गरम रोटी चूरमा निकाले और पेटभर कर खा लिया। सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा। बहुएं ठंडा भोजन करने का दिखावा करके घर काम में लग गई। सास ने कहा,”बच्चे कब के सोए हुए हैं, उन्हे जगाकर भोजन करा लो”।
बहुएं जैसे ही अपने-अपने बेंटों को जगाने गई तो उन्होंने उन्हें मृत पाया। ऐसा शीतला माता के प्रकोप से हुआ था, क्योंकी बहुओं ने ठंडा खाना नहीं खाया था। बहुएं विवश हो गई। सास ने घटना जानी तो बहुओं से झगडने लगी। सास बोली कि तुम दोनों ने अपने बेटों की बदौलत शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए अपने घर से निकल जाओ और बेटों को जिन्दा-स्वस्थ लेकर ही घर में पैर रखना।
अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकल पड़ी। जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। यह खेजडी का वृक्ष था। इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थीं। बहुओं ने थकान का अनुभव भी किया था। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूंओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया। कहा-तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल ठंडा किया है, वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।
दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं, परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं है। शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दूराचारिनी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।
यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं। अनजाने में गरम खा लिया था। आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं। आप हम दोनों को क्षमा करें। पुनः ऐसा दुष्कृत्य हम कभी नहीं करेंगी।
उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर दोनों माताएं प्रसन्न हुईं। शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया। बहुएं तब बच्चों को साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे। दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव प्रवेश करवाया। बहुओं ने कहा,’हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी।
चैत्र मही ने में शीतला सप्तमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगी। शीतला माता ने बहुओं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब पर करें। श्री शीतला मां सदा हमें शांति,शीतलता तथा आरोग्य दें।
इस मंत्र से करें शीतला माता की आराधना
शीतले त्वं जगन्माता
शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री
शीतलायै नमो नमः।।
शीतला माता की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता।
जय शीतला माता…
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता ।
जय शीतला माता…
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।
जय शीतला माता…
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।
जय शीतला माता…
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।
जय शीतला माता…
जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।
जय शीतला माता…
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।
जय शीतला माता…
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।
जय शीतला माता…
शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।
जय शीतला माता…
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।
जय शीतला माता…।