शिव भगवान के रहस्य, डमरू, नाग, त्रिशूल और समाधि का अर्थ क्या है

भगवान शिव (Lord Shiva) से संबंधित हर महत्वपूर्ण जानकारी…

जब हम अपना सिर आकाश की तरफ उठाते हैं, तो हमें अपने कद के बौनेपन का अहसास होता है। ब्रह्मांड और उससे जुड़ी हर छोटी बड़ी रचना का रहस्य हमें किसी महाशक्ति  या महामहेश्वर जैसी परिकल्पना को सच और भौतिक मानने पर मजबूर करते हैं। जीवन की इन्हीं जटिलताओं को कम करने और उस एक मात्र रहस्य को जानने का साधन है धर्म। धर्म हमें कई तरह से जीवन जीना सिखाता है, कभी भक्ति, कभी साधना तो कभी योग द्वारा परम रहस्य या मोक्ष को जानने के मार्ग प्रशस्त करता है। आज हम इन्हीं परम रहस्य के भंडार भगवान शिव की बात करेंगे और जानेंगे कि भगवान शिव कौन है, भगवान शिव कहां हैं, भगवान शिव क्या करते हैं और शिव के जन्म व माता पिता रहस्यों को भी संक्षिप्त में जानने का प्रयास करेंगे। 


भगवान शिव कौन है (bhagwan shiv kon hai)


भगवान शिव कहां रहते है (bhagwan shiv kaha rahte hai)


भगवान शिव क्या करते हैं (bhagwan shiv kya karte hai)


शिव किसका ध्यान करते हैं (shiv kiska dhyan karte hai)


शिव का स्वरूप (shiv ke swaroop)


शिव का डमरू (damro of shiva)


शिव के गले में नाग का महत्व (shiv ke gale ka naag)

शिव के गले का सर्प है कुंडलिनी का सूचक (shiv ka kundalini jagran)

सर्प भी सुप्त ऊर्जा के स्रोत के रूप में होता है, इसे कुंडलिनी शक्ति कहा जाता है, जो हमारे भीतर रहती है और सभी मनुष्यों के मूलाधार चक्र में एक कुंडलित सर्प के रूप में वर्णित है। जब कोई अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करता है और तेजी से दिव्य उन्मुख हो जाता है और ऊपर की ओर बढ़ता है। इस प्रकार, शिव के गले में सर्प इस अर्थ को व्यक्त करता है कि उनमें कुंडलिनी न केवल पूरी तरह से उत्पन्न हुई है, बल्कि उन सभी भक्तों पर नजर रखते हुए, जो अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के साथ शिव के पास जाते हैं, दिव्य गतिविधि में सक्रिय रूप से शामिल हैं।


भगवान शिव का त्रिशूल (bhagwan shiv ka trishul)


शिव, शक्ति, सृजन और विनाश



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